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उदारमना श्री बाबू छोटेलाल जी जैन
ले बंशीधर शास्त्री
०६६६ का जनवरी मास भारतीय इतिहास में भी उन्होंने उपयोग नहीं किया, अन्य वस्तुओं की
अशुभ माह समझा जावेगा। जिसमें डा० भामा तो बात ही क्या । वे बाजार में बनी हुई चीज जैसे महान अणु वैज्ञानिक एवं श्री लाल बहादुर जी कभी नहीं खाते थे, चाहे भयंकर गर्मी ही क्यों न शास्त्री जैसे प्रधानमंत्री पाकस्मिक मत्य के शिकार हो पानी भी बाजार में न पीकर घर में ही पाकर बने । इनकी क्षति पूति होना निकट भविष्य में पीते थे। संभव नहीं लगता । यह माह जैन समाज के लिए आप प्रारम्भ से ही बोरा के व्यापार में लगे, भी विशेष तौर पर प्रशुभ रहा जिसमें २६ जनवरी
६ जनवरा जहां मापने अपने बुद्धि कौशल से धन कमाने के को प्रातः श्री छोटेलाल जी जैन जैसे पुरातत्व संस्कृति साथ-साथ अपने सहज निर्मल व्यवहार से प्रतिष्ठा के प्रेमी एवं निर्भीक कार्यकर्ता का देहावासन हो
भी अजित की । उस समय बोरा बाजार में अंग्रेज, गया।
मारवाड़ी, गुजराती, नाखूदा तथा बंगाली प्रादि उन जैसे विविध प्रवृत्तियों में लीन व्यक्ति की।
विभिन्न जातियों के व्यापारी थे, किन्तु वे सब जीवन गाथा पाने वाली पीढ़ी के लिए हमेशा प्रेरणा ।
उनको अत्यन्त सम्मान देते थे। उनकी जैन समाज स्पद रहेगी । वे वास्तव में महान थे। वे व्यापार
, में भी बहुत प्रतिष्ठा थी, वे कई दिगम्बर जैन व्यवसाय में व्यस्त रहते हुए भी पुरातत्व, शिक्षा,
मन्दिरों के ट्रस्टी थे। वे आवश्यकता पड़ने पर अपने साहित्य, संस्कृति, समाज सुधार संगठन तथा
प्राणों की परवाह न करते हुए मन्दिरों की रक्षा में अभावग्रस्त एवं पीड़ित मानवों की सेवा प्रादि में तत्पर रहते थे। एक बार हिन्दू-मुस्लिम दंगे के अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहते थे।
समय नया मन्दिर की स्थिति बहुत भयावह हो गई
थी, वहां भय के कारण कोई भी नहीं जाना चाहता श्री छोटे लाल जी जैन का परिचित वर्ग उन्हें था; किन्तु वे सब के मना करने पर भी वहां गये "बाबू जी," "जैन जी," "सरावगीजी" प्रादि और मन्दिर की सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था करके हो नामों से पुकारता है, किन्तु इन नामो में उनका लौटे । इस पर भी जैनी भाई वहां पूजन पृक्षाल के 'बाबू जी' नाम ही अधिक प्रचलित है। लिए जाने में डरने लगे तब श्री रामजीवनदास जी प्रापके पूर्वज राजस्थान के फतहपुर (सीकर
स्वयं अपने दोनों पुत्रों को लेकर बहा गए जिनमें
श्री छोटेलाल जी भी थे। वहां पूजन पृक्षाल की जयपूर) से माए थे। मापके पिता श्री रामजीवन
समुचित व्यवस्था करवाई। दास सरावगी कलकत्ता जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे । वे दीन दुखियों की गुप्त रीति से कलकत्ता जैन समाज के प्रमुख व्यक्ति होने के सहायता करते थे। वे मन्दिर जो में प्रातः और कारण उनका भारत के प्रमुख जैन बंधुनों से परिचय सायं नियमित रूप से शास्त्र सभा में उपस्थित रहते था। वे सस्थानों के पैसे को निजी काम के लिए
उन्होंने हमेशा सादा जीवन और उच्च विचार कभी उपयोग में नहीं लाते थे। यहां तक कि मन्दिर को अपना मूल मंत्र रखा । कलकत्ता जैसे बड़े शहर के कोष से अपने रुपये खुदरा कराना भी पाप में रहते हए भी साबुन और बर्फ जैसी वस्तुओं का समझते थे।