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________________ "Growth and Development of Urban life in Rajasthan." लेखकडा० के नाशचन्द जैन, एम. ए. पी. एच. डी. डी. लिट् । राजस्थान में नागरिक जीवन के विकासक्रम का अध्ययन करते हुए लेखक ने बताया है कि राजस्थान के विभिन्न नगरों के नामकरण के प्राधार भिन्न भिन्न हैं। जैसे चित्तौड़, विशालपुर, अजमेर आदि का नाम उन नगरों की स्थापना करने वाले राजाओं के नाम पर है। आमेर शाकम्भरी प्रादि नगर किसी देवी अथवा देवता के मंदिरों के चारों ओर बस गए और उनका नाम करण उस देवी अथवा देवता के नाम पर ही होगया । माण्डव्यपुर (मण्डोर) और वशिष्ठपुर आदि ग्राम वहां रहने वाले सन्तों के नाम से हैं । कूछ नगर जातियों के नाम से भी हैं-जसे भीलमाल, (भीलों का), नागौर (नागों का), तक्षकगढ (तक्षकों का) आदि । कुछ नगरों के प्रारम्भिक नाम अपभ्रंश मे थे किन्तु बाद में विद्वानों ने उन्हें संस्कृत रूप दे दिया । यद्यपि लेख केवल राजस्थान के नगरो को दृष्टि में रख कर ही लिखा गया है किन्तु हमारा विश्वास है कि जो कारण लेखक ने राजस्थान के ग्रामों के नामकरण के संबंध में गिनाए हैं वे सारे भारत के नगरों के संबंध में पूर्णतः लागू होते हैं। "Salient Common Features between Jainism and Buddhism" लेखक- डा०बी० एच० कापडिया। श्री कापडिया सरदार वल्लभ भाई विद्यापीठ में संस्कृत के रीडर हैं। जैसा कि लेख के शीर्षक से विदित है जैन और बौद्ध धर्मों के सिद्धान्त और प्राचार विचार में जो साम्य है उसका सविस्तार परिचय इसमें है। "Gujarati Society and the Jainas." लेखक-. डा० एम. प्रार. मजूमदार एम० ए० पी. एच. डी., एम० ए० एल० एल० बी०। योग्य व्यापारी, वित्तीय बुद्धि के धनी, मुद्रा विनिमय में उनका नेतृत्व, मध्यकाल, लोककथानों में व्यापारी राजा, विदेशी व्यापारियों के साथ उनका व्यवहार, धार्मिक सहिष्णुता और समानता, गुजरात में महाजनों का प्रभाव, धनी. गरीब और मध्यम वर्ग, उनका साहित्य और संगीत, गुजरात की उन्नति में जैन धर्म का योगदान, आदि शीर्षकों के अन्तर्गत गुजराती समाज का अध्ययन करते हुए लेखक ने बताया के मजराती प्रधानतः प्राथिक दृष्टिकोण वाले, विशाल हदय वाले और पडौसियों में मेलजोल रखने वाले होते हैं। यही कारण है कि गुजराती सभ्यता ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा नैश्यों को सभ्यता न होकर भारतीय सभ्यता है और भारतीय होते हुए भी उसमें विश्वमंत्री के गुरण हैं। “Some Forms of the Obligatory Participle in Prakrit." लेखक-श्री L. A. Schwrizschild, Australia । एक विदेशी विद्वान् द्वारा लिखे गये इस लेख में प्राकृत भाषा में विधिवाचक कृदन्त शब्दों के विकास पर महत्वपूर्ण शोध सामग्री प्रस्तुत की गई है जो स्तुत्य और स्पृहणीय है। "Jaina Arungalam in Tamil Literature." लेखक--श्री के. जी. कृष्णन, एम० ए०, सुप. फार ईपीग्राफी ऊटकमाण्ड । मद्रास के उत्तरी अर्कोट जिले के वान्दीवास तालुके के सियामंगलम् ग्राम के स्थम्भेश्वर मंदिर से उत्तर पश्चिम की तरफ दो फाग दूर एक शिलालेख है । जैनों में अरुंगलान्वय भी एक अन्वय है । लेखक की कल्पना अनुसार गुण
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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