________________
रक्षाबंधन और दीवाली के प्रसिद्ध त्यौहारों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में हिन्दू और जैन कपानकों में भेद, जैनों के दैनिक षडावश्यक और हिन्दुओं के पांच महायज्ञ को समानता मादि पर संक्षिप्त चर्चा की गई है।
___ "The Sociological Approach of the Jaip Ritualistic study......" लेखक-श्री एल० के० भारतीय, एम० ए०। "पुराण और धार्मिक साहित्य जहां उनको मानने वाली जाति विशेष में एकत्व स्थापित करते हैं वहां वे अन्य जातियों के साथ जो उस साहित्य को नहीं मानते अनैक्य भी फैलाते हैं," यह बताते हुए लेखक ने जैनों की मंत्र विद्या, मूर्ति पूजा, यज्ञोपवीत, छटीपूजा, वैवाहिक संस्कार, ईश्वर संबंधी मान्यता, प्रादि धार्मिक और सामाजिक रीतिरिवाजों का वर्णन किया है और आगे बताया है कि इन सबसे भी महत्वपूर्ण बात जैनों की यह है कि वे चारित्र पर सर्वाधिक बल देते हैं। लेखक के विचार से पाज जो जैन केवल व्यापारिक समाज के रूप में ही रह गये है उसका भी एक कारण यह है कि जैन अपनी धर्म पुस्तकों में बताये हुए प्राचार विचार को केवल व्यापार करते हुए ही सुरक्षित रख सकते हैं योद्धा बन कर नहीं। अन्त में यह निष्कर्ष लेखक का है कि अहिसा और समत्व की निर्माण शक्ति तब तक फलीफूत नहीं हो सकती जब तक कि एक सम्प्रदाय विशेष की सीमा में वह कंद है क्योंकि ऐसी स्थिति में मानव मात्र उसका पालन नहीं कर सकता। लेखक के कुछ विचारों से किसी का विरोध हो सकता है किन्तु उसने जो निष्कर्ष निकाला है वह ध्यान देने योग्य है।
"Jaina Tradition Regarding Yasovarman's Lineage." लेखक-श्री डी० एम० सरकार । ७२८ से ७५३ ईस्वी तक कन्नौज पर राज्य करने वाले प्रतापी राजा यशो-वर्मन के वंश के सम्बन्ध में इतिहासकारों में मतभेद चला रहा है। लेखक ने जैन और जैनेनर प्रमाणों से सिद्ध किया है कि वह मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का बंशज था । लेख ऐतिहासिक महत्त्व का है।
'Simapati plates of Chahaman Prince Jayatsiha-Smvt. 1238" लेखक-श्री के० वी० सौन्द्र राजन्, एम० ए० सुप०-पाकिमोलोजीकल सर्वे आफ इण्डिया । राजस्थान के पाली जिले के नादोल ग्राम से लेखक को प्राप्त दो ताम्र पत्रों का विवरण प्रस्तुत लेख में है। ताम्रपत्र सम्वत् १२३८ की वैशाख ७, शनिवार का है जो २५ अप्रेल सन् ११८१ के समकक्ष है । ताम्रपत्र अनलपुरा के पार्श्वनाथ मंदिर को ४ स्थानीय व्यक्तियों द्वारा दिये गये दान से सम्बन्धित है । लेख के अन्त में दोनों ताम्र पत्रों की रोमन लिपि में नकल भी है। लेख से सीमापटी ग्राम और चौहान (चहमान) राजा जयसिंह के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण ऐति. हासिक जानकारी प्राप्त होती है ।
Jainism in Bengal.' लेखिका-श्रीमती वन्दना सरस्वती, एम० ए० । श्री रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर. प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान का मत है कि बंगाल पहले पार्य क्षेत्र में नहीं था किन्तु वह जैनों के अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर और अन्य जैन विद्वानों
और साधुओं द्वारा अपने धर्म के प्रचारार्थ वहां विहार करने के फलस्वरूप बाद में प्रार्य क्षेत्र में सम्मिलित किया गया था । विद्वान लेखिका ने ऐतिहासिक और पौराणिक प्रमाणों के आधार पर भण्डारकर के इस मत को सही प्रमाणित किया है । लेख पठनीय है।