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________________ "Jain Art of Mathura." लेखक-डा. वी. एस. अग्रवाल । मथुरा जैन कला का केन्द्र रहा है प्रस्तुत लेख मथुरा में प्राप्त जैन कला के भग्नावशेषों पर एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करता है। "The Image of Heaven in the Ceiling of the Adinath Temple at Ranakpur," लेखक-डा० Klans Fisher, Bonn. प्रस्तुत लेखमें भारत प्रसिद्ध राणकपुर के प्रादिनाय जैन मंदिर को वास्तुकना, खुदाई कना आदि पर कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है । लेव का महत्व इस कारण भी है कि वह एक विदेशी विद्वान द्वारा लिखा गया है। "Gandhawal A Rare Jaina Site of Malva." लेखक-श्री एम.पी. गुप्ता । मध्य प्रदेश के देवास जिले की तहसील सोनकछ में गंधावल एक छोटा सा गांव है जहां बहुमूल्य मूतिकलाका स्वजाना है किन्तु अब तक यह गाव सरकार और विद्वान् दोनों की ओर से प्रायः उपेक्षित रहा है। यहाँ प्राप्त मूर्तियां कला की दृष्टि से ग्वालियर के अन्य स्थानों में प्राप्य वीं १० वीं शताब्दी की मूतियों से साम्य रखती हैं। प्रस्तुत लेख में वहाँ से प्राप्त कतिपय मूर्तियों की कला दृष्टि से विवेचना करते हुए मचित्र झांकी प्रस्तुत की गई है । 'Temples of Orissa and Bundelkhand." लेखक-पद्मभूषण श्री टी. एन. रामचन्द्रन । लेख में जैसा कि शीर्षक से प्रकट है उड़ीसा और बुन्देलखण्ड के कोणार्क और खजुराहों के मंदिरों की कला की समीक्षा करते हुए नागर शैली के क्रमिक विकास पर विचार किया गया है। _ "Nayanar Temple." लेखक-श्री जीवबंधु श्रीपाल । जैसा कि लेखक ने स्वयं कहा है, प्रसिद्ध ग्रंथ थिर कुरल के लेखक की स्मृति में मद्रास. माइलापुर में स्थित एक प्राचीन जैन मंदिर का इतिहास प्रस्तुत लेख में चित्रित किया गया है । लेख खोजपूर्ण है। "Some Thoughts on Jain Wall Paintings." -1.. Goofsaa एम० ए० डी० एस० सी० । प्रस्तुत लेग्य में सित्तनवासन के जैन मंदिर, अलौरा की गुफाओं, तरुमलई के जैन मंदिर और तीरू परुट्टी करम् के जैन मंदिर के भित्ति चित्रों का कला दृष्टि से मूलाङ्कन करते हुए उनकी दीर्घकाल तक स्थिति रह सके इसके लिए वैज्ञानिक उपायों पर विचार प्रस्तुत किया गया है। कलात्मक चित्रों को दीर्घकाल तक ठीक अवस्था में रखने की एक विकट समस्या है जिस पर प्राधुनिक वैज्ञानिक विचार कर रहे हैं और इटली आदि में एतबंधी प्रयोग हुए हैं । लेखक की दृष्टि में इसके लिये Stripping and mounting की विधि श्रेष्ठ है । अन्य वैज्ञानिकों को इस पर विचार करना चाहिये और ऐसी विधि खोजने का प्रयत्न करना चाहिये जिससे कला की ऐसी अमूल्य निधियां काल के थपेडो से सुरक्षित रह सकें। "Jain Mythology and Rituals.'' लेलक-प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती एम. ए. काव्यतीर्थ । जैन रामायण और हिन्दू रामायण में राक्षसों वानरों आदि के संबंध में दृष्टिभेद,
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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