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________________ ( ढ ) उसके सर्वागीण महत्त्व का आकलन कर पाना संभव नहीं है, यह है वह निष्कर्ष जो लेखक ने हिन्दी के प्रादिकाल के जैन ग्रंथों का रासक, मुक्तक प्रादि शीर्षकों के अन्तर्गत परिचय दे निकाला है । लेखक ने जो कुछ कहा है उसके विषय में दो मत नहीं हो सकते । खेद है कि इधर इस सम्बन्धी शोध कार्य बहुत कम हुआ है। जब तक तत्कालीन प्राप्त जैन ग्रन्थो का इस दृष्टि से अध्ययन न किया जाये हिन्दी साहित्य के आदिकाल के इतिहास के पन्ने भरे नहीं जा सकते । 'दो ऐतिहासिक रचनाएं' लेखक - श्री भंवरलाल नाहटा । इस लेख में 'श्री पूज्य श्री चिन्तामणिजी जन्मोत्पत्ति स्वाध्याय, तथा 'गणनायक श्री खेमकरणजी जन्मोत्पत्ति संथारा विधि' नामक दो रचनाओं का परिचय दिया गया है जो १८वीं शताब्दी की हैं और अब तक प्रकाशित हैं । "राष्ट्रीय संग्रहालय में मध्यकालीन जैन प्रस्तर प्रतिमाएँ" लेखक - श्री बृजेन्द्रनाथ शर्मा एम. ए. प्रस्तुत निबन्ध में राष्ट्रीय संग्रहालय में संगृहीत कतिपय जैन प्रस्तर प्रतिमानों का, जो मध्यकालीन हैं, परिचय दिया गया है। जिनका परिचय प्रस्तुत लेख में है वे प्रतिमाएँ ऋषभनाथ, सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ, तीर्थकर, गोमेध श्रीर अम्बिका तथा अम्बिका की हैं। लेख सचित्र है । " श्राचार्य जिनेश्वर श्रीर खरतरगच्छ " लेखक - साहित्य महोपाध्याय श्री विनयसागरजी । इस लेख में खरतरगच्छ के उद्भावक प्राचार्य जिनेश्वर सूरि के जीवन दर्शन पर विवेचन करते हुए खरतरगच्छ शब्द पर विचार किया गया है तथा खरतर गच्छ का उत्पत्ति काल सं० १०६६ से १०७८ के मध्य महाराजा दुर्लभराज के राज्यकाल मे सिद्ध किया है। "जैनधर्म की प्राचीनता एवं सार्वभौमिकता" लेखक - डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री | लेख में अनेक पुष्ट प्रमाणों और युक्तियों द्वारा जैन धर्म को प्राचीन श्रौर सार्वभौम प्रमाणित किया गया है । लेख परिश्रमपूर्वक लिखा गया है और जैन इतिहास का अध्ययन करने वालों के लिए इसकी महत्ता स्वयंसिद्ध है । "बीसवीं सदी विक्रमी के जैनसंत योगी श्रीमद्राजचन्द्रजी" लेखक - श्री कस्तूरमल बाँठिया | श्रीमद्राजचन्द्र से प्रायः प्रत्येक स्वाध्याय प्रेमी पाठक परिचित होगा। श्रीमद् का प्रभाव गांधीजी ने स्वयं अपने ऊपर होना स्वीकार किया था । लेख पाठक को सदाचार की प्रेरणा देता है। 'जैन ज्योतिष के प्राचीनतमत्व पर संक्षिप्त विवेचन" लेखक- वंद्य प्रकाशचन्द्र पांड्या श्रायुर्वेदाचार्य । जैसा कि लेख के शीर्षक से स्वयं प्रकट है प्रस्तुत लेख में जैन ज्योतिष को प्राचीनतम सिद्ध किया गया है। इस विषय में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये लेख महत्वपूर्ण है और परिश्रमपूर्वक लिखा गया है। "जैन दर्शन के प्रमुख प्रवक्ता श्राचार्य समन्तभद्र" लेखक-प्रो० उदयचन्द्र जैन एम. ए. । उक्त लेख में प्राचार्य समन्तभद्र के दार्शनिक विचारों पर प्रकाश डाला गया है। दर्शन का क्या
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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