SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गवेषणापूर्ण विचार किया है। वास्तव में लेखक का यह कथन कि ग्रन्यबाहुल्य को दृष्टि से तो इस युग का महत्व है ही, पर विविध विषयक रचनायो की दृष्टि से भी इस युग का कम महत्व नहीं है, अक्षरशः सत्य है। ___ 'पंच कल्याणक तिथियां और नक्षत्र' लेखक-श्री मिलापचन्द कटारिया, केकड़ी। प्रस्तुत निबंध में लेखक ने उत्तरपुराण, अपभ्रंश महापुराण और कल्याण माला इन तीनों ग्रंथों की पंचकल्याणक तिथियों के मतभेद को ज्योतिषशास्त्र के प्रमाणानुमार शुद्ध करके समन्वित किया है और अन्त में पंचकल्याणकों को शुद्ध तिथियों और नक्षत्रों का एक चार्ट दिया है । लेखक को युक्तियां अकाट्य मालूम होतो हैं और एतद् सम्बन्धी विवाद को समाप्त करने में सक्षम हैं। लेखक ने यह लेख बड़े अध्ययन और परिश्रम से लिखा है। "जैन ग्रंथों में राष्ट्रकूटों का इतिहास' लेखक-श्री रामबल्लभ सोमानी। जैन ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। यदि इनका परिश्रम पूर्वक अध्ययन किया जावे तो भारत के इतिहास की कई विलुप्त कड़ियां सहज ही जोड़ी जा सकती हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने जैन ग्रथों से राष्ट्रकूटों के इतिहास का वर्णन किया है जो श्लाघनीय है। "भारतीय साहित्य में सीता हरण प्रसंग" लेखक-डा० छोटेलाल शर्मा एम. ए. पी. एच. डी. । प्रस्तुत लेख में भारतीय वाङ्मय में सीता हरण प्रसंग से सम्बन्धित जितने भी प्रकार की धाराएं उपलब्ध होती है उन सबका विवेचन किया गया है। 'प्राचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि में भारतीय समाज" लेखक-डॉ० जयशंकर मिश्र एम. ए. पी. एच. डी. प्रस्तुत निबंध में प्राचार्य हेमचन्द्र के ग्रंथों के अाधार पर भारतीय समाज सम्बन्धी उल्लेखों का विश्लेषण और मूल्यांकन किया गया है । वर्णव्यवस्था केसी थी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों का समाज में क्या स्थान था, शूद्रों की उत्पत्ति कैसे हुई, प्रादि विषयों द्वारा तयुगीन समाज के स्वरूप को समझने में लेख से बड़ी सहायता मिलती है। ५वीं शती के प्राकृत ग्रन्थ वसुदेव हिन्डी की रामकथा"-लेखक श्री अगर चन्द नाहटा । प्रस्तुत लेख में लेखक ने यह सिद्ध किया है कि सीता रावण की पुत्री थी अथवा जनक की, एतद सम्बन्धी विवाद भारत में ५वीं शती से भी प्राचीनतर है। ग्रंथ के नाम के साथ जो हिन्दी शब्द लगा है हमारे विचार मे वह हिन्दी का ही पूर्व रूप है । वसुदेव हिन्डी अर्थात् वसूदेव भाषा अथवा हिन्दी भाषा में वसुदेव चरित्र । अगर हमारा यह विचार सत्य है तो हिन्दी शब्द और हिन्दी भाषा का प्रादुर्भाव ५वीं शतो से भी अधिक पूर्व में चला जाता है। भाषा सम्बन्धी शोध कर्तामों के लिये 'वसुदेव हिन्डी' वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी सिद्ध हो सकता है। 'अग्रवालों का जैन धर्म में योगदान' लेखक-श्री परमानन्द शास्त्री। प्रस्तुत लेख मे बारहवीं शताब्दी से लेकर आज तक अग्रवाल जाति का जैन धर्म के प्रचार और विकास में क्या पौर कितना योग रहा है इस पर ऐतिहासिक दृष्टि से संक्षिप्त विवेचन किया है। अग्रवाल जाति का यदि इतिहास लिखा जावे तो यह निबन्ध लेखक को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्रदान करने में समर्थ है। हिन्दी का आदिकाल और जैन साहित्य' लेखक-डा० छविनाथ त्रिपाठी एम. ए.पी. एच. डी.। प्रादिकालीन जैन साहित्य की उपेक्षा कर हिन्दी साहित्य के प्रादिकाल के स्वरूप और
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy