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________________ अर्थ है ? जैन दर्शन के इतिहास में समन्तभद्र का क्या स्थान है ? उनके समय की दार्शनिक विचारधारा क्या थी? उन्होंने सर्वज्ञ और वस्तु में उत्पाद व्यय ध्रौव्य की सिद्धि किस प्रकार की है ? आदि विषयों का विवेचन है जिससे पाठक को समन्तभद्र की दार्शनिक विचारधारा का तो भान होता ही है, साथ ही जैन दर्शन की मुख्य-मुख्य बातों का भी ज्ञान हो जाता है। __"प्रातः स्मरणीय सन्त गणेश वर्णी" लेखक-नीरज जैन । नीरजजी हिन्दी के जाने माने लेखक हैं । गणेशप्रसादजो वर्णी के नाम से भी शायद ही कोई जैन अपरिचित हो । उन जैसे सरल स्वभावी साधु कम ही देखने में पाते हैं। "पागमों व त्रिपिटकों के संदर्भ में अभयकुमार" लेखक मुनि श्री नगराज जी । श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार का वर्णन जैन और बौद्ध दोनों ही साहित्य में पाया है किन्तु उसका जीवन वृत्तान्त भिन्न-भिन्न प्रकार से वरिणत है। मुनि श्री ने प्रमाण सहित सिद्ध किया है कि जैन और बौद्ध अभयकुमार एक ही व्यक्ति न होकर दो पृथक-पृथक व्यक्ति हैं। लेख की अपनी ऐतिहासिक विशेषता है। "भारत की जैन जातियां" लेखक-भंवरलाल पोल्याका । प्रस्तुत लेख में लेखक ने विभिन्न मूचियों के अाधार से ३५० से भी अधिक जातियों के नाम गिनाये हैं जब कि प्रचलित जन श्रुति के अनुसार इनकी संख्या ८४ ही कही जाती है प्रत्येक मूचिकार ने भी यह संख्या ८४ ही रखी है। लेख में कुछ जातियो के प्राप्त प्राचीनतम उल्लेग्वों का भी वर्णन है । लेख खोज पूर्ण है। तृतीय खण्ड "जैन दर्शन, पाश्चात्य दर्शन और विज्ञान मे आकाश और काल" लेखक-मुनि महेन्द्रकुमार जी द्वितीय । प्रस्तुत लेख में प्राकाश और काल सम्बन्धी जन और पाश्चात्य दर्शनों एवं वैज्ञानिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है और अन्त में निष्कर्ष निकाला गया है कि वैज्ञानिक प्रापेक्षिकता का सिद्धान्त अाकाश और काल सम्बन्धी जिन धारणामों को उपस्थित करता है उनकी सत्यता असंदिग्ध एवं उनका दार्शनिक प्रतिपादन सर्वसम्मत नहीं है। आकाश, काल और विश्व की गतिस्थिति सम्बन्धी समस्याओं का हल करने वाले जैन दर्शन के सिद्धांत एक सम्यक् दार्शनिक प्रणाली अाज के वैज्ञानिको के समक्ष उपस्थित करते है। मुनि श्री स्वयं बी. एस. सी है अतः उनका विवेचन वैज्ञानिक एवं अधिकृत है। याज इम ही प्रकार के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जैनदर्शन के सिद्धान्त विश्व के समक्ष रखने की महती आवश्यकता है। भूधरदास कृत पार्श्वपुराण और उसमें पशु-पक्षि वर्णन" लेखक-डा. महेन्द्रसागर प्रचंडिया एम. ए. पी एच. डी. । लेख में कवि भूधरदास ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति हेतू पार्श्व पूराण में जिन पशु-पक्षियों का आधार लिया है उनका अध्ययन करते हुए निष्कर्ष निकाला गया है कि यद्यपि कवि का जीवन धामिक मर्यादाओं में नियमित और सीमित था तथापि उन्होंने जीवन की अनेक स्थिति-परिस्थितियों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म ज्ञान था। "समाधियोग" लेखक-आचार्य श्री रजनीश । लेखक के अनुसार सत्य की खोज के दो मार्ग हैं। एक वैचारिक और दूसरा दार्शनिक । वैचारिक मार्ग तर्क पर आधारित होने से
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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