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________________ १७४ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्थ हिन्दी की उपभाषामों में केवल मैथिली की रचनायें अन्तर्गत प्रक्ष्य-गेय (प्राजकाल का गीति-नाट्य) उपलब्ध हैं। नाथ पंथी और सिद्धों का साहित्य प्रादि- को रखा गया है और रासक उसका एक रूप है। काल की महत्वपूर्ण सामग्री है। शेष तीन वर्गों की हेमचन्द्र के पूर्व रासक के कई रूप प्रचलित थे। कृतियां या तो जैन साहित्य के अन्तर्गत पाती हैं ताल रास, लगड रास, चर्चरीमादि उसके विविध या इस धारा से पूर्णतः प्रभावित हैं। रूपों की चर्चा ही नहीं मिलती, पर अपभ्रश के महाकवि स्वयंभू ने अपने प्रबन्धकाव्य पउम चरिउ रास या रासक में उसका प्रयोग भी किया है । उनके प्रयोग से रास या रासक के सम्बन्ध में विविध मत | यह भी स्पष्ट हो जाता है कि रास केवल प्रचलित है। हिन्दू परम्परा 'रास' से मंडलाकार ___ मंडलाकार नृत्य मात्र नहीं था । उनके समय यह नत्य का बोध करती है और कृष्ण से इसका सम्बन्ध ध्रुवक युक्त लोकगीतिनाट्य था । मावश्यकताजोड़ लेती है। रास, चर्चरी प्रादि के प्राचीन नुसार प्रबन्ध काव्य में उसे अंग रूप में प्रयुक्त किया उल्लेखों से इसका सम्बन्ध लोक जीवन और लोक । जा सकता था। लगुड रास केवल डंडा लेकर ही नृत्यों से जोड़ लिया जाता है। डा० दशरथ प्रोझा नहीं, कोई भी शस्त्र लेकर दो व्यक्ति (पुरुष-पुरुष, सातवीं शताब्दी में इसका प्रचुर प्रचार स्वीकार या पुरुष-स्त्री) संपन्न कर सकते थे, हां गाने के करते हैं।' रिपुदारण रास के प्राधार पर लिये साथ में अन्य व्यक्तियों की प्रावश्यकता होती ध्रुवक युक्तता इसका एक गुण भी सिद्ध करते हैं। ' थी। अभिनय (गीत के भावानुसार) दो व्यक्तियों यह भी उन्होंने लिखा है कि ८वीं शताब्दी से १५वीं का ही चल सकता था। शताब्दी तक के मध्य कृष्ण रास लीला का प्रायः ___हेमचन्द्र के समय तक रासक का भी पाठ्य प्रभाव सा प्रतीत होता है। अतः दसवीं से पौर गेय भेद नहीं बन सका था अपितु-गेय-प्रेक्ष्य चौदहवीं शताब्दी तक जो रास काव्य लिखे गये उनका सम्बन्ध किसी भी प्रकार से कृष्ण रास से (भभिनय युक्त) और गेय मात्र (मभिनय युक्त) भेद अवश्य बन चुका था और इसका प्रथम उदाहरण नहीं जोड़ा जा सकता है। उपलब्ध रास काव्य भी जिनदत्त सूरिका 'उपदेश रसायन रास' है जो गेय इसकी साक्षी नहीं देते। ये रास काव्य अधिकतर मात्र तो है पर गेयाभिनेय नहीं। यही स्थिति जैन कवियों द्वारा लिखे गये हैं। प्रतः इनकी रास उनकी चर्चरी की है। सम्बन्धी धारणा का निर्णायक महत्त्व है । हेमचन्द्र ने प्रेक्ष्य काव्य के दो भेद किये हैं पाठ्य और रेय । अपभ्रंश के जितने भी रास काव्य उपलब्ध हैं पाट्य में उन्होंने-नाटक, प्रकरण, नाटिका, समव- उनमें वहमाण कृत 'संदेश रासक' को छोडकर कार इहामृग, डिम, व्यायोग, उत्पष्टिकोक, प्रहसन, सभी जैन कवियों की रचनायें हैं। संदेश रासक भाण, वीथी और सहक प्रादि । गेय में उन्होंने- विप्रलंभ शृगार का रासक (गीति नाट्य ) है और डोम्बिका, भारण, प्रस्थान, शिंगक, भारिणका, प्रेरण, भरतेश्वर बाहुबली रास वीरानुप्राणित शान्त रस रामाक्रीड, हल्लीसक, रासक, गोष्ठी, श्रीगदित राग का रासक । उपदेश रसायन रास इस प्रकार के काम्यादि । इस विभाजन से स्पष्ट है कि प्रेक्ष्य चरितों को जिनमें संसार से वैराग्य दिखाया गया तो दोनों बयों की कृतियां हैं पर द्वितीय वर्ग के हो नाट्य पौर नृत्य रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति १. द्रष्टव्य-रास और रासान्वयी काव्य-पृ. ३६ २. वहीं। ३ वही पृ०४१ ४. द्रष्टव्य-काव्यानुशासन-८१३,४॥
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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