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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्थ के 'सुदंसरण चरित्र' का प्रभाव स्पष्ट है। भाषा बूढिया, कपिस्थल, संकिसा प्रादि स्थानों में लिखी मोर भाव दोनों का चयन सुन्दर है। नथ चोपाई गई हैं । कवि को सबसे प्रथम रचना 'अर्गलपुर छन्द में लिखा गया है। कवि ने इस प्रथ को सं० जिन वन्दना' है जिसे कवि ने सं० १६५१ में १६६३ में माघ एक्ला पंचमी गुरुवार के दिन प्र.गरा में बनाई थी. उसमें प्रागरे की यात्रा का बनाकर समाप्त किया था। दोनों ही ग्रन्थ अकबर समाचार अंकित है । मुक्ति रमणी चूनड़ी सं० के पुत्र जहांगीर के राज्य में रचे गए हैं। १६८०, वृहत् सीता सतु सं० १६८४, लघुसीता सतु
छठवें कवि 'भगवतीदास' हैं। इनका गोत्र सं० १६८७, अनेकार्थ नाममाला सं० १६८७, 'वसल' था। यह बूढिया ' जिला अम्बाला के मृगांकलेखा चरित सं० १७००। इन रचनामों निवासी थे। इनके पिता का नाम किसन के अतिरिक्त अन्य रचनामों में रचना संवत दिया दास था. उन्होंने चतुर्थवय में मुनिव्रत धारण कर हुमा नहीं है । इससे उनके सम्बन्ध में कुछ नहीं लिया था। यह बुढिया से जोगिनीपुर (दिल्ली) कहा सकता । मनकरहारास, जोगीरास, टंडाणा चले गए थे। उस समय देहली में अकबर के पुत्र रास, चतुर वनजारा, आदित्यव्रत रास, दशलक्षण जहांगीर का राज्य था । उस समय देहली की रास, साधुसमाधिरास, रोहिणीव्रतरास, द्वादशाभट्टारकीय गद्दीपर भट्टारक सकलचन्द्र के पट्ट नुप्रेक्षा, सुगंधदशमीकथा, अनथमीकथा, समानीशिष्य मनि महेन्द्रसेन विराजमान थे, जो भ. ढमाल, आदिनाथस्तवन, शान्तिनाथ स्तवन, दिल्ली गणचन्द्र के प्रशिष्य थे। दिल्ली के मोती बाजार में को राजावली, राजमती नेमीश्वर ढमाल, सांवलाजिन मन्दिर था, जिसमें भगवान पार्श्वनाथ की गीत, मनसूवागीत, वीरजिनिदगीत, चौमासागीत, मति विराजमान थी। २ कविवर वहीं पर रहते मधुकरगीत, वणजारा गीत, मुक्तावलीरास, थे । कधि की अनेक कृतियाँ उपलब्ध है। उनमें दिवाली ढाल गीत, कर्मचेतनहिंदोला, कर्मप्रकृति कुछ तो इतनी बड़ी हैं कि वे स्वयं एक स्वतंत्र हिंदोला, रुतिनवेली वारहमासा, वैरागीलाल बारहग्रन्थ का रूप ले लती हैं । और छोटी छोटी अनेक मासा, बारहमासा और अनेक पद, मनहरणगीत, फूटकर रचनाए है जो समय समय पर रची गई भमरागीत, बावती, मादि अनेक फटकर रचनाएं हैं। ये सब रचनाएं एक ही स्थान पर नहीं रची अजमेर के एक गुच्छक में संगृहीत हैं। वैद्यविनोद गई'; किन्तु दिल्ली, आगरा, हिसार, सहजादपुर, और ज्योतिषसार ये दोनों ग्रंथ कारंजा भंडार में
१. धूढ़िया पहले एक छोटी सी रियासत थी, जो धन धान्यादि से खूब समृद्ध नगरी थी। जगाधरी के
बस जाने से बूढिया को अधिकांश प्राबादी वहां से चली गई, प्राज कल वहां खंडहर अधिक हो
गए हैं, जो उसके गत वैभव को स्मृति के सूचक हैं। २. गुरु मुनि माहिंदसेन भगौती, तिस पद पंकज रंन भगोती।
किशनदास वरिण तनुज भगौती, तुरिये गहिउ व्रत मुनिजु भगौती ॥२ नगर बूढिए वसं भगौती, जन्मभूमि है पासि भगोती। अग्रवाल कुल वंसल गोती, पंडितपद जन निरख भगौती ॥३ जोगनिपुर राज, राय-खोरि नित नौबत बाजे। प्रतिमा पार्श्वनाथ धनबंता, नागरनर पवर मतियतां ॥४ मोतीहट जिन भवन विराज, प्रतिमा पार्श्वनाथ की साज । श्रावक सुगन सुजान दयाल, षट जिय जाम कर प्रतिपाल ॥५
-वृहत् सीता सतु