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अमवालों का जैनधर्म में योगदान
प्रवाल जैन कवियों की साहित्य सेवा
जैन संस्कृति के प्रसार और प्रचार में केवल भावकों ने ही योग नहीं दिया है किन्तु समय समय पर अनेक अग्रवाल जैनकवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा लोक कल्याण की भावनाओंों को प्रोसेजन दिया है । इतना ही नहीं किन्तु तात्कालिक रीतिरिवाजों के साथ अपनी धार्मिक भावनात्रों को वृद्धिगत किया है।
कवि श्रीधर हरियाना देश के निवासी थे और थे । आपके पिता का प्रवाल कुल में उत्पन्न हुए नाम 'गोल्ह' और माता का नाम 'बील्हा देवी' था । कवि ने अपनी गुरु परम्परा और जीवनादि की घटना का कोई उल्लेख नहीं किया । कवि हरियाना से जमना ( यमुना ) नदी को पार कर योगिनीपुर (दिल्ली ) धाया था और उसने धनंगपाल तृतीय के मंत्री नट्टल साहू के अनुरोध से संवत् १९८९ में 'पासरगाह चरिउ' की रचना की थी। इस ग्रंथ में कवि ने अपनी एक अन्य रचना 'चन्द्रप्रभचरित' का उल्लेख किया है । इस खण्ड काव्य में पार्श्वनाथ का जोवन-परिचय अंकित किया गया है और अन्तिम प्रशस्ति में ग्रंथ निर्माण में प्रेरक नट्टल साहू के परिवार का परिचय कराया गया है। कवि की एक अन्य रचना 'बद्दमावरिङ' नामक खण्ड काव्य है जिसमें जैनियों के अन्तिम तीर्थंकर महावीर का जीवनचरित दिया हुआ है, जिसे कवि ने सं० १९९० में बनाकर समाप्त किया था। इस ग्रंथ की एक प्रति ब्यावर के ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन में मौजूद है।
दूसरे कवि सधारू हैं । इनके पिता का नाम साह महाराज और माता का 'सुधनु' था, जो गुणवती थी । कवि एरन्छ नगर के निवासी थे । इनकी बनाई हुई एकमात्र कृति 'प्रथम्न चरित' है जिसमें यादव वंशी श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का
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वरित 'कित किया गया है। यह एक सुन्दर चरित काव्य है, यह ग्रन्थ श्री महावीर अतिशय क्षेत्र की ओर से पं० चैनपुखदास जी धौर डा० कस्तूर चंदजी के संपादकत्व में प्रकाशित हो चुका है।
तीसरे कवि बुधत्रीस हैं जो साह तोतू के पुत्र थे, तथा भट्टारक हेमचन्द के शिष्य थे । इन्होंने धर्मचक्र पूजा सं० १५८६ में रोहतक नगर के पार्श्वनाथ मन्दिर में बनाकर समाप्त की थी । इनकी दूसरी रचना 'वृहत्सिद्धचक्र पूजा' है जिसे कवि ने वि० सं० १५८४ में देहली के मुगल बाद
शाह बाबर के राज्य काल में रोहतक के उक्त पार्श्वनाथ मन्दिर में बनाई थी । इनकी दो कृतियों के नाम और मिलते हैं । 'नन्दीश्वर पूजा' और ऋषिमंडल यत्र पूजा-पाठ । ये दोनों ही ग्रंथ धभी मेरे देखने में नहीं आये इस कारण उनके सम्बद्ध में यहां कुछ कहना संभव नहीं है ।
चौथे कवि प्रथ्वीपाल है, जो गगंगोत्री और पानीपत के निवासी थे। इन्होंने सं० १६६२ में ३९ पद्यों में 'श्रुतपंचमीरास' की रचना थी ।
पांचवें कवि 'नन्दलाल' या नन्द हैं, जो आगरा के पास गोसना नामक स्थान के निवासी थे। इनका गोत्र गोल था। पिता का नाम भैरों या भैरोंदास और माता का नाम चन्दा देवी था ।" कवि की दो कृतियां मेरे देखने में भाई हैं और दोनों ही रचनाएं सुन्दर हैं । प्रथम रचना यशोधर चरित्र में महाराज यशोघर का चरित वरिणत वरित है। कथानक पुराना होते हुए भी उसमें काव्यत्व की दृष्टि से नयापन लाने का प्रयत्न किया गया है। भाषा में प्रसाद धौर गतिशीलता है। कवि ने इसे सं० १६७० में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन बनाकर समाप्त किया था। इनकी दूसरी कृति 'सुदर्शन चरित' है जिसमें सुदर्शन के चरित्र का चित्रण किया गया है। कथानक पर नवनन्दी
१. अगरवाल वरवंश गोमुना गांव को गोइल गोत प्रसिद्ध ता ठांव को
माता बन्दा नाम पिता भैरों भन्यो, 'नन्द' कही मन मोद गुनी गुनन गिन्यो |