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________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ १६४ के राज्य काल १ में समाप्त किया था । ज्ञानचन्द्र के तीन पुत्र थे, उनमें ज्येष्ठ पुत्र सारंग साहुने सम्मेद शिखर की यात्रा की थी, और द्वितीय पुत्र साधारण ने, जो गुणी और विद्वान था एवं जिस का वैभव बड़ा चढ़ा था, 'शत्रु'जय' की मात्रा की थी, जिन मन्दिर का निर्माण कराकर हस्तिनागपुर की यात्रार्थं संघ चलाया था । साहू टोडर गुणी, कर्तव्य परायण मौर टकसाल के कार्य में अत्यन्त दक्ष थे और संभवतः वे प्रकबर की टकसाल का कार्यभार भी सम्पन्न करते थे । इनकी जाति प्रग्रवाल और गोत्र गर्ग था । यह भटानिया कोल (अलीगढ़) के निवासी थे, और काष्ठासंघ के भट्टारक कुमारसेन की माम्नाय के श्रावक थे, किसी समय वहां से प्राकर प्रागरा में बस गये थे, जैनधर्म के अनुयायी थे। भाग्यशाली, कुलदीपक और प्रत्यन्त उदार थे। इनके पितामह का नाम साहु रूपचन्द था और पिता का नाम साहू पासा था । साहु टोडर देव-शास्त्र-गुरु के भक्त ये धर्मवत्सल विनयी, परदार विमुख, दानी, कर्तव्य परायण, पर दोष भाषण करने में मौन रखने वाले कृपालु धौर धर्मफलानुरागी थे । काष्ठासंघ के विद्वान पांड़े राजमल को नागरा में इनके समीप रहने का सौभाग्य शप्त हुआ था। वे इन का बहुत मादर करते थे मौर इनके प्राज्ञाकारी थे। राजमल को वहां रह कर साहू टोडर धौर कबर बादशाह को नज़दीक से देखने का प्रवसर मिला था । इसीसे उन्होंने अपने जंबूस्वामी चरित में, जो साहू टोडर की प्रेरणा से रचा गया था, अकबर की खूब प्रशंसा की है मीर उसे शराब बन्दी करने वाला तथा 'जिजिया' कर छोड़ देने वाला 3 लिखा है। મ साहु टोडर अकबर के प्रिय पात्र तथा राज्य संचालन में सहयोग देने वाले रम जाती पुत्र साहू गढ़मल और कृष्णामंगल चौधरी दोनों का प्रीति पात्र था और कृष्णामंगल चौधरी का सुयोग्य मंत्री था। पांडे राजमल साहू टोडर के तो अत्यन्त नजदीक ये ही उन्होंने उनकी केवल प्रशंसा ही नहीं की है अपितु उनके धार्मिक कार्यों का भी उल्लेख किया है और आशीर्वाद प्रादि द्वारा उनकी मंगल कामना भी प्रकट की है । साहु टोडर की धर्मपत्नी का नाम कसुभी था, उससे तीन पुत्र हुए थे। रिषीदास या ऋषभदास, मोहनदास और रूपमांगद । ५ उनमें प्रथम पुत्र ऋषभदास अपने पिता के समान ही धर्मनिष्ठ, जिनवाणी भक्त और गुणी था। साहू टोडर ने १. बाबर ने सन् १५२६ ईस्वी में पानीपत की लड़ाई में दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी को पराजित और दिवंगत कर दिल्ली का राज्य शासन प्राप्त किया था। उसके बाद उसने प्रागरा पर अधिकार कर लिया था, और सन् १५३० (वि० सं० १५८७) में श्रागरा ही में उसकी मृत्यु हो गई थी। यह केवल ५ वर्ष हो राज्य कर पाया था । ४. उग्राग्रोतकवंशोत्यः श्री पासातनयः कृती । वर्धता टोडरः साधू रसिकोऽज कथामृते ।। ५. जंबू स्वामि चरित ७३ से ७७ श्लोक पृ० १ २. जंबूस्वामीचरित २७ २६ पृ० ४-५ २. शाश्वत साहि जलालदोनपुरतः प्राप्त प्रतिष्ठोदयः, श्रीमान् मुगलवंश शारद शबfरण स्वोपकारोद्यतः नाम्ना कृष्ण इति प्रसिद्धि रभवत् सक्षात्र धर्मोते, तन्मंत्रीश्वर टोडरो गुणवृतः सर्वाधिकाराधितः ॥ ज्ञानावटीकाप्रशस्ति जंबुस्वामी चरित्र सं० ४
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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