________________
अग्रवालों का जैनधर्म में योगदान
इससे नट्टल माहु की धार्मिक परिगति का प्रौषध, अभय तथा ज्ञानादि चारों दान दिया सहज ही पता चल जाता है। प्रादिनाथ का उक्त करते थे। साहू खेतल ने गिरनार की यात्रा का मन्दिर कुतुबमीनार के पास बना हुअा था, बड़ा यात्रोत्सव किया था । वह अपनी धर्मपत्नी ही सुन्दर मोर कलापूर्ण था । वर्तमान में यहाँ काकलेही के साथ योगिनीपुर (दिल्ली) में पाया कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद बनी हुई है जो २७ था। कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत होने पर साहू मन्दिरों को तोड़कर बनाई गई थी।
फेरू की धर्मपत्नी ने कहा कि स्वामिन ! श्रतपंचमी इसके अतिरिक्त दिल्ली में सं० १३२८, १३७०. का उद्यापन कराइये। इसे सुनकर फेरू अत्यन्त १३६१. पौर १३६६ में क्रमश. पंचास्तिकाय कुन्द- हर्षित हुमा और उसने मूलाचार नामक ग्रन्थ कुन्द, तत्वार्थवृत्ति पूज्यपाद क्रयाकलाप टीका और श्रुतपंचमी के निमित्त लिखा कर मुनि धर्मकीर्ति उत्तरपुराण पुष्पदन्त का प्रादि ग्रंथ लिखाकर भेंट के लिये प्रपित किया । धर्मकीति के दिवंगत होने पर किये गये। उसके बाद सं० १४१६ में भगवती उनके प्रमुख शिष्य यम नियम में निरत तपस्वी माराधना का टिप्पण और वृहदद्रव्य संग्रह की टीका मलयकीति को ससम्मान अर्पित किया। उक्त की प्रतियाँ लिखाकर भेंट की गई। इस तरह प्रशस्ति मलयकीति द्वारा लिखी गई है, जो ऐतिशास्त्र दान को प्रोत्साहन दिया जाता रहा। हासिक विद्वानों के लिये बहुत उपयोगी है ।' विक्रम संवत् १४६३ में योगिनीपुर (दिल्ली)
अग्रवाल वंशी साहू वील्हा और धेना ही के के समीप बादशाह फीरोजशाह तुगलक द्वारा।
पुत्र हेमराज ने जो वादशाह मुमारख (मुबारिक वसाये गए फीरोजाबाद नगर में, जो उस समय
शाह शैय्यद) का मंत्री था, योगिनीपुर (दिल्ली) में
भरहतदेव का जिन चैत्यालय बनवाया था, और जब धन, वापी, कूप, तडाग, उद्यान प्रादि से। विभूषित था, प्रग्रवाल वंशी गर्ग गोत्री साह लाखू
भद्रारक यशकीति से पाण्डब पुराण वि० सं० निवास करते थे। उनकी प्रेमवती नाम की एक
१४६७ में बनवाया था। धर्म पत्नी थी, जो पातिव्रत्यादि गुणों से प्रलंकृत उक्त पुराण भट्टारक यशःकीति ने हिसार थी । इनके दो पुत्र थे साहु खेसल और मदन । खेतल निवासी प्रग्रवाल वंशी गर्ग गोत्री साह दिवडढा के की धर्मपत्नी का नाम सरो' था, जो सम्पति- अनुरोध से, जो इन्द्रिय-विषय-विरक्त, सप्तव्यसन संयुक्त भौर दान शीला थी। खेतल और सरो से रहित, अष्टमूलगुणधारक, तत्त्वार्थश्रद्धानी, प्रष्ट ग्रंग फेरू, पल्हू मौर बीधा नाम के तीन पुत्र हुए थे। परिपालक ग्यारह प्रतिमा माराधक और बारह व्रतों और इन तीनों की काकलेही. माल्हाही प्रौर का अनुष्ठापक था, वि० सं० १५०० में भारपट हरीचन्दही नाम की क्रमश: तीन धर्मपत्नियाँ शुक्ला एकादशी के दिन 'इंदउरि' परगना तिजारा थीं । साहे लाख के द्वितीय पुत्र मदन की में जलालखां (शय्यद मुबारिक शाह) के राज्य में ? धर्मपत्नी का नाम 'रतो' था, उससे 'हरधू' नाम समाप्त किया था। का पुत्र उत्पन्न हुमा था। उसकी स्त्री का नाम जोयरिणपुर निवासी अग्रवाल कुल भूषण गर्ग 'मन्दोदरी' था । साहु खेतल के द्वितीय पुत्र पल्हू गोत्रीय साहु भोज राज के ५ पुत्रों में से ज्ञानचन्द्र के के 'मंडन, जाल्हा, घिरीया और हरिश्चन्द नाम के विद्वान पुत्र साधारण श्रावक की प्रेरणा से इल्लराज चार पुत्र थे । इस सारे ही परिवार के लोग विधि- सुत महिन्दु या महाचन्द्र ने सं० १५८७ को कार्तिक पत् जैनधर्म का पालन करते थे और माहार, कृष्णा पंचमी के दिन मुगल बादशाह बाबर के
१. देखो, मलय कीर्ति और मूलाचार प्रशस्ति. भनेकान्त वर्ष १३ कि० ४