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________________ १४० : बाबू छोटेखाल जैन स्मृति प्रन्य ___डा० प्रत्तेकर ' और धुर्ये २ का मत सूर्यवंशीय. हरिवंशीय उपकुली, भोगकुली, सोलंकीय है कि वैश्य कालान्तर में पाद की स्थिति तक मा गुहिल्ल, उच्च, परमार, प्रतिहार, चौलुक्य, सकल गए । किन्तु हेमचन्द्र के उपरिलिखित विवरण के प्रमुख क्षत्रिय; शिल्पकार, स्वर्णकार, प्रमुख वैश्य विवेचन से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि मध्य- वर्ण; प्रमुख, सौद्र ।" काल में पेश्यों की स्थिति शूद्रों के समानान्तर नहीं इस वर्णन से वैश्यों की निम्नता नहीं झलकती थी, बल्कि प्राचीन काल से उनका जो स्थान समाज में है। ग्राम प्रपवा नगर में ये एक साथ रहते थे और में था, वह अब भी था। मंतर केवल एक बात अपने व्यवसाय का पालन करते थे। वस्तुतः वंश्यों का था, वह यह कि उनको प्राचीन काल में जो के स्तर के सम्बन्ध में डा. अल्तेकर और डा. अधिकार वेद पढ़ने का था, वह इस काल में धुर्ये का कथन युक्तियुक्त नहीं। माचार्य हेमचन्द्र सम्भवतः ग्राबद्ध सा हो गया था। किन्तु इसका का कथन ही वैश्यों के व्यवसाय और उनकी स्थिति यह पर्थ नहीं कि उनकी अवस्था शूद्रों के समकक्ष का सर्व प्रकारेण प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी थी । भारतीय ग्राम विभिन्न जाति के लोगों के संपुष्टि "सभाथ गार" के उपयुक्त वन से पावास से सर्वथा परिपूर्ण होते थे । ग्राम अथवा होती है। शहर की प्रावश्यकतामों की प्रति करने वाले सभी व्यवसाय के लोग उसमें रहते थे जिसमें केवल वैश्य शूद्र और शूद्र ही नहीं ब्राह्मण और क्षत्रिय भी शामिल भारतीय सामाजिक प्राचार-विचार और थे। प्रतः वैश्य कालान्तर में शूद्रों के स्तर तक पा व्यवहार-क्रम में शूद्रों का स्थान अन्य बों की गए। युक्तिसंगत नहीं। "सभाथ गार" के एक तुलना में चौथा स्थान था। समाज के अन्य वणों वर्णन से विदित होता है कि नगर में अनेक व्यव- के कर्मों और अधिकारों की अपेक्षा इनके अधिकार सायों को करने वाले तथा सभी वर्ण के लोग और कर्म सीमित थे । न उन्हें बेद पडने का निवास करते थे अधिकार था, न व्यापार करने का। समाज की सर्वविधिपूर्वक सेवा करना ही उनका मुख्य कर्म तथा महासार्थवाह, इम्य श्रेष्टि, व्यवहारिक, था। ईश्वर की भोर से शूद्र का एकमात्र कर्म दीपिक, नैस्तिक; प्रमुख प्रस्तोक, कवि अरणलोक; ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, तीनों वरण की सुध षा तथा सुवर्णकार, कांस्यकार, दंतकार, लोहकार, करना ही प्राचीन धर्म शास्त्रों में बताया गया है। ४ शिल्पकार; रथकार, सूत्रधार, सूपकार, चित्रकार, कुभकार, मालाकार रूप प्रमुख बसई; नगर हेमचन्द्र ने दो प्रकार के शूद्र ५ वतलाए शातीय, श्रीमालज्ञातीय, डीडवाल, सडेरवाल, हैं, एक आर्यावर्त में रहने वाले और दूसरे मार्यावर्त जालंधरीय, सत्यपुरीय, प्रमुख ब्राह्मण ; सोमवंशीय, के बाहर रहने वाले । आर्यावर्त में रहने वाले शूद्रों १. The Rashtrakutas and their Times, pp. 332-33. P. Caste and class in India, pp. 57,64, 88, 96. ३. सभागार, पृ० ११ । ४. एकमेवतु, शूद्रस्या प्रभुः कर्मसमादिशत् । एतेषामेव वर्णानां शुश्रषामनसूयया ॥ मनु० २.६१, याज्ञ० ५१.२०, महा० शांति०, ७२.८ । ५. “पात्र यशूद्रस्य'-सिबहेमशब्दानुशासन, ३।१।४३ ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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