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भाचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि में भारतीय समाज
१४५ का भी उल्लेख हेमचंद्र ने किया। है' प्रतः' शब्द को 'क्षत्रात्त्राणम' से निःसृत माना है। ४ हेमचंद्र द्वारा दिए गए, विभिन्न प्रदेशों के ब्राह्मणों 'क्षतात्त्राणम', अर्थात् उनका कर्म था अन्य तीन के इन उल्लेखों से उनकी व्यापकता और उनका वर्णों के लोगों को हानि अथवा भय से रक्षा विस्तार प्रकट होता है । साथ ही यह भी स्पष्ट करना। हेमचंद्र ने 'क्षत्रिय' और 'राजन' शब्द पर होता है कि उन प्रदेशों के ब्राह्मणों का समाज में विचार करते हुए लिखा है कि क्षत्रिय जाति के उत्कृष्ट स्थान था।
मभिषिक्त व्यक्ति 'राजन्य' के नाम से अभिहित मौर क्षत्रियेतर जाति के प्रशासक व्यक्ति “राजन्य'
के नाम से संबोधित किए जाते थे। यही नहीं. राजनीतिक दृष्टि से क्षत्रियों का महत्व हिंदू हेमचंद्र ने सघीय शासम में भाग लेने के अधिकारी समाज में प्रमुख था। समाज के परिपोषण और क्षत्रिय' कुल के व्यक्तियों को भी 'राजन्य' नाम रक्षण में उनका अभूतपूर्व योग था । देश पोर दिया है। माः इस विवेचन से स्पष्ट है कि जनता की व्यवस्था का रक्षात्मक और निर्देशात्मक क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत 'राजन' और 'राजन्य' भार क्षत्रिय समुदाय पर था। मध्यकाल में ही दोनों पाते थे। नहीं, प्राचीनकाल में भी जब-जब देश पर शत्र मों
कर्म की दृष्टि से क्षत्रियों का कर्म अत्यंत का भाक्रमण हुमा, क्षत्रियों ने एकनिष्ठता और
महत्वपूर्ण था। शक के अनुसार जो लोक की रक्षा साहस के साथ देश और प्रजा की रक्षा की। प्रतः
करने में दक्ष, बीर, दांत, पराक्रमी पौर दुष्टों को शूरता मोर वीरता की दृष्टि से क्षत्रियों का मान
दंड देने वाला हो, वही क्षत्रिय है । . प्राचार्य समाज में ब्राह्मणों की अपेक्षा कम नहीं था। नवी
हेमचन्द्र ने क्षत्रियों को "शरता"को ही "परुषार्थ" शती के अरबी लेखक इनखुर्दाज्या ने लिखा है कि
माना है । ऐसा लगता है हेमचन्द्र ने क्षत्रियों क्षत्रियों के समुख सभी सिर झुकाते हैं, लेकिन वे
के "पुरुषार्थ" के अंतर्गत सभी कर्मों को निहित कर किसी को सिर नहीं मुकाते । २ इस कथन से
लिया । हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती सम्राट् भोज की यह इतना स्पष्ट है कि उनका समाज में भादरात्मक
व्यवस्था है कि "जो बीर, उत्साही शरण देने और स्थान था।
रक्षा करने में समर्थ, हद और विशाल शरीर वाले हेमचंद्र ने 'क्षत्रिय' शब्द को' क्षत्र 'शब्द से थे, वे संसार में क्षत्रिय हुए। उनका काम ब्राह्मणों व्युत्पन्न 'इय' प्रत्यय के साथ जाति पर्थ में प्रयुक्त के लिए निर्दिष्ट कार्यों के प्रतिरिक्त विक्रम. प्रजा होना बताया। किंतु लक्ष्मीपर ने 'क्षत्रिय' की रक्षा, उनके भाग प्रादि का प्रबन्ध और व्यवस्था
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१. पंचालस्य ब्राह्मणस्य राजा पांचाल. पंचालस्य ब्राह्मणस्यापत्यं वा पांचालः वही, ६।१ ११४ २. किताबुल-मसालिक-बल् ममालिक, पृ०७१, लीडन, १८८६ ३. 'क्षत्रादित्यः 'क्षत्रस्थापत्यं क्षत्रियः बातिश्चेत 'सिउहेमशब्दानुशासन, ६॥ १। ६३ । ४. कृत्यकल्पतरु, गृहस्थ०, पृ० २५२ । ५. 'जातौ रामः-''राजन् शब्दादपत्यै जातो गम्यमानायां य: प्रत्ययो भवति, यथा-रामोऽपत्यं ___ राजन्यः क्षत्रियजातिश्चेत् । राजनोऽन्यः ।-सिबहेमशब्दानुशासन, ६।१६९२ । ६. 'राजन्याविम्योऽकम्'-वही, ६।२।६६॥ ७. शुक०, १.४१॥ ८. क्षत्रियः पुरुषाणां पुरुषेणु वा धूरतम् '-सिद्धहेमशब्दानुशासन, २२२॥ १०॥