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थे । प्रोफेसर डाक्टर बुद्ध प्रकाश ने प्राचार्य हेमचंद्र का उद्धरण देते हुए ब्राह्मणों की विशेष सुविधाओंों प्रारण दंड, शारीरिक दंड आदि की समीक्षा की है । "
बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ
ब्राह्मणों को प्रापत्तिकाल में जब कर्तव्य से च्युत होना पड़ता था, तब उन्हें पोषण के लिए ब्राह्मणेतर व्यवसाय अपनाना पड़ता था । इस तरह के प्रापत्तिकालिक कर्मों का निर्देश भारतीय धर्मशास्त्रकारों ने किया है। ऐसी अवस्था में इतर कर्म को ग्रहण करने वाला ब्राह्मरण केवल नाम का ब्राह्मण होता था, कर्म से वह ब्राह्मण नहीं होता था । प्रापत्तिकाल में ब्राह्मण 'आयुधजीवी', 'व्यापारोपर्ज वी' 3 तथा 'ब्याजोपजीवी' हो सकता था । किन्तु प्राचार्य हेमचन्द्र ने ब्राह्मणों का इतर कर्म निद्य माना है और सामाजिक दृष्टि से अनुचित निद्दिष्ट किया है। उनका मत है कि जो ब्राह्मण सोम का विक्रय करता है, धो का विक्रय करता है तथा तेल का विक्रय करता है वह निंदनीय है । ५ निश्चय ही प्राचार्य हेमचंद्र का विचार ब्राह्मणों के प्रति तटस्थ सा है । उनके विचार से
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३. मनु० १०.८६ ।
४. कृत्यकल्पतरु, गृहस्थकांड, २१४ - २१ ।
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प्रत्येक वर्ण को अपना कर्म करना चाहिए। किन्तु इसी युग के कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि ब्राह्मण विभिन्न कर्मों को करते । ब्राह्मण मंत्री होते थे, नगर प्रमुख होते दंडनायक होते थे, मूर्तिकार होते अभिलेखों के रचयिता होते थे । १० वे राष्ट्र और राजा की रक्षा अपनी सलाह देकर करते थे । ५१ विक्रम संवत् १२१३ के कुमारपाल के नाडील अभिलेख में उसके मंत्री का नाम वहड़देव लिखा है, जो संभवतः उसके प्रारंभिक राज्यकाल में उदयन का पुत्र था। वह दंडाधिपति के साथसाथ महामात्य भी था ।
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1. Buddha Prakash: Some Aspects of Indian Culture of Muslim Invasions, P. 39. २. EI, II, 301.
हेमचंद्र ने विभिन्न प्रदेशों के ब्राह्मणों के लिए उस प्रदेश के नाम के साथ उनको संबोधित किया है, जैसे सौराष्ट्र में निवास करने वाले ब्राह्मण 'सौराष्ट्रिक' अथवा 'सुराष्ट्र ब्राह्मण' कहे जाते थे, अवंति में निवास करने वाले 'अवंति ब्राह्मण' से जाने जाते थे तथा काशी देश में बसने वाले 'काशी ब्राह्मण' से अभिहित थे । १३ 'पांचाल ब्राह्मणों
on the Eve
११.EI., I, P. 293.
५. शब्दानुशासन, ५। । १५६ ।
६. राजतरंगिणी, ८, १०८, BI, 332; IHQ., XV, p. 581.
७, राजतर गिरणी, ७. १०८ ।
5. EI., II, 301,
६. बकुलस्वामी ( गिरनार अभिलेख, RLARBP. 322)
१०. कमोली प्लेट में मनोरथ, EI, II, 394; सोमेश्वर गुजरात में EI I, 31; चालुक्य शीम
द्वितीय के अन्तर्गत माधव EI, XV, 57.
१२. रासमाला, प्रत्याय १३, पृ० २३१ ।
१३, सुराष्ट्रे ब्रह्मा सुराष्ट्रः यः सुराष्ट्रे वसति स सौराष्ट्रको ब्राह्मण इत्यर्थः एवमवन्ति ब्राह्मणः काशि ब्राह्मण:- सिद्धहेमशब्दानुशासन, ७३|१०७ ।