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________________ भारतीय साहित्य में सीताहरण प्रसंग डा० छोटेलाल शर्मा एम० ए० पी-एच. डी. भारत में राम कथा की प्रद्वितीय व्यापकता दिख- किया। खर को भी ऋषियों का निर्भय विचरण "लायी पड़ती है। संस्कृत साहित्य में ही नहीं, फूटी प्रांख नहीं सुहाता था। उसने विशिरा और . भारत की अन्य जनपदीय भाषाओं तथा निकटवर्ती दूषण को बुलाकर युद्ध का डंका बजवा दिया। देशों के साहित्य में भी राम कथा का एक महत्व अनेक अपशकुनों को देखकर खर का मन बैठने लगा पूर्ण स्थान है। साहित्य की प्रत्येक विधा में इसका लेकिन अन्य कोई चारा म देख कर युद्ध छेड़ दिया रोचक अनुसंधान हुआ है । वैष्णव धर्म में राम को गया । उधर राम ने. सीता को लक्ष्मण के साथ विष्णु का अवतार माना गया है, बौद्धधर्म में बोधि- गिरि-गहा में भेज दिया। दोनों प्रोर से तुमुल युद्ध सत्त्व का और जैन धर्म में प्राठवें बलदेव का। वस्तुतः हमा। ऋषि, देव. गंधर्व चारण प्रादि सब राम के राम कथा कालानुक्रम से जन सामान्य के सांस्कृतिक स्वस्तिवाचन के लिए. एकत्र हए। रण में चौदह व्यक्तित्व का अनुसंधान है। चारों ही पुरुषार्थ सहस्र राक्षस खेत रहे। प्रपन ने रावण को राम गृहस्थाश्रम में समन्वित होते हैं । सीता हरण प्रसंग के पराक्रम और सीता के सौदयं से परिचत कराया का संबंध गृहस्थाश्रम के विशिष्ट मूल्यों से है । इस और यह सुझाव भी दिया कि राम का बध सीतादृष्टि से भी प्रस्तुत प्रकरण का महत्त्व है। हरण से संभव है। रावण तुरंत मारीच के पास गया और समझाने-बुझाने पर लोट पाया। इतने में रोती. प्रस्तुत प्रकरण का रोचक एवं विस्तृत विवरण बिलखती शूर्पणखा पाई। उसने कहा कि सीता बाल्मीकि रामायण में प्राप्त होता है जो नीचे उसके योग्य भार्या है। यह देख वह उससे वार्तालाप दिया जा रहा है। के लिये जैसे ही उद्यत हुई वैसे ही करकर्मा लक्ष्मण हेमंत के दिन थे। राम, लक्ष्मण और सीता ने उसको विरूप कर दिया। रावण के मन में फिर गोदावरी से लौट रहे थे। भरत और कैकेयी उनके खलबली पैदा हयी। और वह पूनः मारीच के पास वार्तालाप का विषय थे। सहसा उन्हें रावण की पहचा। मारीच उसको देखकर. घबड़ा गया। उसने विधवा बहिन शूर्पणखा दिखाई पड़ी। वह सुन्दरी राम के राज-लक्षणों, सीता के पातिव्रत्य मोर पर• के वेश में थी। उसने पाते ही मुग्ध होकर राम से स्त्री-रमण के पाप का सकेत कर उसे इस कार्य से विवाह का प्रस्ताव किया। उन्होंने उसको लक्ष्मण विमुख करने का प्रयत्न किया लेकिन उसने एक न के पास भेज दिया। वे उससे ठठोली करने लगे। सूनी। पं० विश्वामित्र के यज्ञ प्रोर पंचवटी की प्राप वह पलट कर सीता पर झपटी, राम ने हुँकार की, बीती उसने भी सुनाई । उसने यह भी बताया कि वह ठिठकी और लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट उसको सर्वत्रराम ही दिखाई पड़ते हैं और रकार ही लिए। वह रोती-बिलखती खर के पास पहुँची और सुनाई पड़ता है। रावण ने पहले तो उसको भत्सना उन तीनों का रक्त पीने की इच्छा प्रकट करने की और फिर मुक्ति तथा माघे राज्य का प्रलोभन लगी। खर ने अपने चौदह प्रख्यात राक्षसों को उसके दिया। रावण ने उसे माझा न मानने की अवस्था साथ कर दिया। पंचवटी में वे सब मौत के घाट में प्राण दण्ड देने का भी भय दिखाया। मारीच उतार दिये गये। यूपणखा ने पूनः खर को प्रेरित को प्राण दंड की अपेक्षा वीरता पूर्वक प्राण त्याग
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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