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________________ बाबू छोटेखाल जैन स्मृति ग्रन्थ अधिकारी था का उल्लेख प्रादिपुराण नीति- थे । राजानों द्वारा जलक्रीडाएं और कई प्रकार की वाक्यामृत और यशस्तिलक-बम्पू में भी है। गोष्टियां किये जाने का भी वर्णन मिलता है। अष्टादश श्रेरिणगरण प्रधानों का भी उल्लेख यत्रतत्र सांस्कृतिक सामग्री मिलता है। नीतिवाक्यामृत में कई प्रकार के उस समय सांस्कृतिक गतिविधियों के अध्ययन गुप्तचरों का उल्लेख है । राज्य कर जो प्रायः धान के लिये जैन सामग्नी बहुत ही महत्वपूर्ण है। के रूप में लिया जाता था यह उपज का १ भाग वर्णव्यवस्था ३२ वर्णाश्रम धर्म, 33 सामाजिक था। इनके अतिरिक्त शुल्क मंडपिकानों द्वारा भी संस्कार, ४ वेश्यावृत्ति ३५. भोजन व्यवस्था, संगृहीत किया जाता था। राजामों के ऐश्वर्य का शिक्षा, ३७ चित्रकला, ८ संगीत, ६ माभूषण,. सविस्तार वर्णन है । इनके राज्याभिषेक के समय सौन्दर्य प्रसाधन, " चिकित्सा साधन, ४२ खेतों को किये जाने वाले उत्सवों का भी प्रादि पुराण में व्यवस्था मादि का इनमें सांगोपांग वण'न वर्णन है। राजामों का अभिषेक भी एक विशिष्ट मिलता है। समसामायिक भारत के वास्तुशिल्प पद्धति द्वारा कराया जाता था। राज्याभिषेक के का भी सविस्तार वणन मिलता है। मंदिर महल समय "पद्र बन्धन" होता था। यह पट्ट बन्धन प्रादि के वनों में इस प्रकार की सामग्री युवराज पद पर नियुक्त करते समय भी बांधा जाता उल्लेखनीय है। श्री मल्तेकरजी ने अपने चंय था। पालन का उल्लेख शिलालेखों में भी मिलता राष्ट्रकूटाज एण्ड देयर टाइम्स में इस सामग्री का है। अन्तःपुर की व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता अधिक उपयोग नहीं किया है। इस सामग्री का है । इसकी गार के लिये वृद्ध कंचुकीगण नियुक्त अध्ययन वांछनीय है। ३३, ३१. "पट्टबन्धापदेशेन तस्मिन् प्राध्वङ, कृते वसा [मा० पु. ११६४२ राज्य पट्टबन्धश्व ज्यायान् समवधीरयन् । पा० पु० ५।२०७ " मरणरण के शक सं० ७१६ के लेख में" राष्ट्रकूट पल्लवान्वयतिलकाम्यां मूर्दाभिषिक्त गोविन्दराज नन्दिवर्माभिधेयाम्यां समुनिष्ठित-राज्याभिषेकाम्यां निजकर घटित पट्टविभूषित ललाट-पट्टो विख्यात" इसीप्रकार पट्टबन्धो जगबन्धोः ललाटे विनिवेशितः । १६२३३ प्रा० पु०, उल्लेख है । पुष्पदंत मे राजाप्रो के अभिषेक और धमरों का उल्लेख व्यंग के साथ किया है "चमराणिल उड्डाविय गुणाइ। मट्टि सेय धोय सुयणतणाइ" ३. प्रादि पुराण १६१८१-१८८,२४२-२४६, २४७, २६।१४२ ३८।४५-४८ और ४२ वा पर्व ४० प्रौर ३६वां पर्व ४।७३ ३११८६-१८८-२०३, १६७३ १४ | १९०-१९१], १६८ १०५-१२८] ६ [ १७०-१६१] १४ [ १०४-१५० १२ [२०३-२०१] १६ [४४-७१ ] १५८१-८४ ] १२ [ १७४ | ११ [१३१६३०-३२ 1 १११५.६, ११३५८, ११११६६ ११११७४-७६, २८ [३८, ४.] २६ [ ११२-११५ ] २६ [ ४८] २६ / १२३-१२७ ] २८ (३२-३६ ११५७]
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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