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________________ जैन ग्रंथों में राष्ट्र कूटों का इतिहास प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि परिकेशरी के पुत्र उल्लेखनीय महाकवि पम्प हैं । इसके द्वारा विरचित बद्दिग की राजधानी गंगधारा में यह ग्रंथ पूर्ण मादि-पुराण चम्पू पौर विक्रमार्जुन विजय हमा पा । इसमें स्पष्टतः वरिणत है कि कृष्णराज ग्रंप प्रसिद्ध हैं पिछले मंथ में परि केसरी की जो ने पाया सिंहल, चोल, चेर मादिराजामों को चालुक्य वंशीय था, और जो सोमदेव के जीता था। इस बात की पुष्टि समसामयिक यशस्तिलक चम्पू में मो परिणत है, वंशावली दी ताम्रपत्रों से भी होती है । पुष्पदंत के आदिपुराण गई है। विक्रमार्जुन विजय ऐतिहासिक ग्रंथ है। में मान्यखेटपूर को मालवे के राजा द्वारा विनष्ट इसमें राष्ट्रकूट राजा गोविन्द III के विरुद्ध करने का उल्लेख है।२४ यशोधर चरित की प्रशस्ति से जात होता है कि जिस समय सारा जनपद नीरस को वद्दिग राज को सौंपने का उल्लेख है। वदिदग हो गया था, चारों पोर दुःसह दुःख व्याप्त हो प्रमोघ वर्ष II का ही उपनाम प्रतीत होता है ।२८ जगह जगह मनुष्या का खापड़िया पार शासन व्यवस्था कंकाल बिखर रहे थे, सर्वत्र करक ही करक दिखाई राष्ट्रकूट राजामों के राजनैतिक इतिहास के दे रहा था उस समय महात्मा नन्न ने मुझे सरस साथ साथ समसामयिक राज्यव्यवस्था का भी भोजन और सुन्दर वस्त्र दिये प्रतएव वह चिरायु जैन ग्रंथों में सविस्तार वर्णन मिलता है। प्रादिहो । २६ महाकवि धनपाल की पाइप लच्छी पुराण, प्रौर नीतिवाक्यामृत में इसका स्पष्ट चित्र नाममाला के अनुसार यह घटना १०२६ वि० में खींचा गया है। राजा और मंत्रियों को उस समय घटित हुई थी । राष्ट्रकूट राजा बोट्टिग के बाद वंश परम्परागत अधिकार प्राप्त थे । २६ मंत्रियों कर्कराज हुमा । परमार प्राक्रमण के बाद राष्ट्रकूट की संख्या सीमित रखने का उल्लेख सोमदेव ने राज्य का अधःपतन प्रारम्भ हो गया और शीघ्र ही किया है। मंत्रिमंडल में मत्रियों के अतिरिक्त चालुक्यों ने वापिस हस्तगत कर लिया। प्रमात्य ( रेवेन्यू मिनिस्टर ) सेनापति, पुरोहित संस्कत और प्राकृत के साथ साथ कन्नड भाषा दण्डनायक भादि भी होते थे। गावों के मुखियों का में भाजधानपत्र और प्रथ लिखे गये। इनमें सबसे उल्लेख प्रादिपराण में है। सलारा जो नगर ६५. दीनानाथधनं सदा बहुजन प्रोत्फुल्ल वल्लीवनं, मान्याखेटपुरं पुरन्दरपुरी लीलाहरं सुन्दरम् । धारानाथनरेन्द्र कोपशिखिना दग्धं विदग्धप्रियं । क्लेदानी वसति करिस्पति पुनः श्री पुष्पदन्तःकविः । कर यह पद संदिग्ध है पोर क्षेपक है। प्र० श्लो० ३६ महापुराण की ५० वीं संधि २६, जी वय नोरसि दुरियमलीमसि । कइणि वायरि दुसहे दुइयारि । पड़ियक बाल इण रकंकालइ । बहुकालइ.अहे हुक्का लइ। पवरागारि सरसाहारि । सहि नि त बोलि महु उपयारिउ पुरणं पेरिउ । गुणभत्तिलउणउँण महल्लउ ॥ होउ चिराउसु'' यशोधर चरित ४१३१-२.." २७. विक्कम कालस्स गए प्रउणतीसुत्तरे साहस्सम्मि। मालव नरिंद घाडीए लूडिए मन्न खेडम्मि ॥ पाइन लच्छी नाममाला (भावनगर) पृ० ४५ २८. मस्तेकर राष्ट्रकूटाज पृ० १०७-१०८ २६. सन्तान क्रमतो गताऽपि हि रम्या कृष्टा प्रभोः सेक्या महामंत्री भरत ने वंशपरम्परागत पद को जो कुछ दिनों के लिये चला गया था पूनः प्राप्त किया [महापुराण (प्रप) भाग ३ पृ० १३ ३०. "बहबो मषिणः परस्परं स्वमतीरक्तर्षयन्ति १०७३ ॥
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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