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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ
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रुचिकर प्रतीत हुआ। अतः वह रावण के साथ हो गया और वह सोने का मृग बनकर सोता दो सुभाने लगा। सोता को इससे कुतूहल हुआ और उसने उसे प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की । राम को उसके बघ की इच्छा हुई लक्ष्मण ने उसको सा लिया लेकिन राम रुक न सके और सीता की रक्षा का भार लक्ष्मण और जटायु के कन्धों पर डालकर उसके पीछे हो लिए दूर जा कर उसका ब्रह्म-बार से बध किया । उसने भी प्राण त्याग के समय अपना रूप प्रकट किया और राम की भावाज में सोता और लक्ष्मण को पुकारा । यह देखकर राम की भी खुली और लक्ष्मण की बात याद प्राणी । वे सीता की चिंता से श्राश्रम I की ओर चल पड़े।
इधर सीता भाई की सहायतार्थ आने के लिए लक्ष्मण को उकसाने लगी। उसने उसको बनायें, निर्दयी, कुलांगार, भरत का गुप्तचर आदि सभी न कहने योग्य कहा । लक्ष्मण भी रोष का घूंट पीकर सशंक मन से उस ओर चले गये। इसी बीच प्राश्रम को सूना देखकर रावण ने वन में प्रवेश किया। उसने मुक्त कंठ से सीता के सौंदर्य की प्रशंसा की और बाद में भय, प्ररणाय और राजनय की बातें। फिर उसने अपना प्रवेश त्याग कर उसको बालात् गधों से जुते रथ में बैठा लिया । सीता का रोना-चिल्लाना सुनकर जटायु को नींद टूटी उसने पहले शास्त्र चर्चा छेड़ी और बाद में वस्त्र तथा उसका रथ कवच और धनुष तोड़ डाला सारी और गर्यो को भी मार डाला। रावण, मौका पाकर सीता को गोद में उठा श्राकाश की ओर भागा। जटायु ने फिर पीछे से धक्रमण किया लेकिन असि प्रहार से भूलु टित हो गया। सीता मरणासन्न कटायु को पकड़कर रोने लगी । रावण उसे गोद में उठाकर श्राकाश मार्ग से लंका ले गया।
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ब्रह्मा और ऋषियों ने अब अपना काम सिद्ध समझा।'
अध्यात्म रामायण की कथा में कुछ संकोच माया है और उसका स्वर भी बदला है। उसमें चौदह राक्षसों का संग्राम छूट गया है और प्रकंपन का इति वृत्त भी मारीच के पास भी रावण एक ही बार जाता है। वे दोनों ही राम के ब्रह्म स्वरूप से अवगत हैं और परमपद पाने की अभिलाषा करते हैं- एक भक्ति से और दूसरा विरोध से । मारीच रावरण को भक्ति का उपदेश देता भी है। रावल भी सीता हरण के समय उस का स्पर्श नहीं करता । वह धरती कुरेदकर भूमि सहित सीता को उठा लेता है और रथ में बैठा लेता है । जटायु के रथ तोड़ देने पर वह दूसरे रथ के द्वारा सीता को लंका ले जाता है। शुर्पणखा भी राम के चरण चिन्हों में राजकीय निशान देखकर उनका अनुगमन करती है। इधर राम को भी रावण के प्रयत्नों का प्राभास है । वे सीता से कहते हैं कि वह यहां परिव्राजक के वेश में भावेगा। अतः उसे अपना प्रतिबिंब छोड़कर धम्नि
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प्रवेश कर जाना चाहिए। धानंद रामायण में राम चौदह सहस्र राक्षसों का रूप धारण कर
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उनका वध करते हैं। नृसिह पुराण में पहले पहल राम के पत्र की चर्चा है उस रचना में दूखमा राम को प्रलोभन देती है और ठुकरायी जाने पर लक्ष्मण के नाम एक पत्र मांगती है। भट्टिकाव्य में राम लक्ष्मण दोनों ही राक्षसों के बध में भाग लेते है । आश्वयं चूड़ामणि में शूर्पणखा छद्मवेश में सीताहरण में सहायक होती है। निष्कर्ष:- बास्मीकि रामायण की दृष्टि वस्तुपरक एवं व्यावहारिक है। उसमें जाति को विशिष्टता प्रदान की गयी है। माध्यात्मिक स्वर
१. वाल्मीकि रामायण श्ररण्यकाण्ड सर्ग १६-५२ २. अध्यात्म रामायण अरण्यकाण्ड सगं ५-७ ३. श्रानन्द रामायण १ । ७ । ६२
४. नृसिंह पुराण अध्याय ४६१ ५. भट्टिकाव्य ४९४९