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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ
कृतियां बहुत मिली हैं जिनका सम्बन्ध मुख्यतया मध्यकाल तक की पायी जाती हैं । ईसबो पूर्व २०० लोकजीवन से है। इनमें मिट्टी की मूर्तियों का से लेकर ६०.ई. तक की मृमूर्तियों की संख्या स्थान बड़े महत्व का है । यद्यपि मिट्टी की कुछ सबसे अधिक है। इनमें से कुछ तो लड़कों के खेलने मतियां देवी-देवतानों विशेषतः हिन्दू देवतामों के लिए बनती थों, जैसे हाथी, घोड़े, गाड़ी मादि की भी मिली हैं, पर उनकी संख्या थोड़ी है। खिलौने । शेष भूतियां वे हैं जिनमें जीवन के विविध पविकाश मिट्टी की मूर्तियां नागरिक तथा मंगों का वैसा ही प्रदर्शन है जैसा कि हम पाषाण ग्रामीण लोक जीवन पर प्रकाश डालती है। पर पाते हैं। मपुरा संग्रहालय से इनकी संख्या बहुत अधिक है। ये अधिकतर टीलों में से तथा यमुना नदी से मथुरा की प्रचुर कलाराशि में वस्तुतः भारतीय प्राप्त हुई हैं। इनके मुख्य दो प्रकार हैं : एक तो संस्कृति के अध्ययन की अत्यन्त मूल्यवान् सामग्री वे जो मौर्यकाल में या उसके पूर्व मातृदेवियों मादि उपलब्ध है। यहां के कुशल कलाकार अनेक देशी की मूतियों के रूप में हाथ से गढ़कर बनाई जाती एवं विदेशी तत्वों तथा भारतीय धर्म-दर्शन की पी भौर दूसरी सांचों के द्वारा बनी हुई। दूसरे विविध धारामों का समन्वित रूप प्रस्तुत करने में प्रकार की मूर्तियां शुमकाल से लेकर लगभग पूर्व सफल हुए।
मांखों देखी भी असंभव घटना किसी से मत कहो, इस पर साइज विश्वास नहीं किया जाता।
जो सचमुच ही क्षमा चाहता हो उसे तो क्षमा करना ही चाहिये।
दुख पाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसे सहने में हो तो मनुष्यत्व है।
-बाबूजी की डायरी से