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________________ मथुरा की प्राचीन कला में समन्वय भावना १०६ मथुरा में इस प्रकार के दृश्यों वाले कई पट्ट हैं। सुख-समृद्धि तथा विलास के प्रतिनिधि हैं। संगीत, गौतम बुद्ध के वर्तमान जीवन की मुख्य घटनाएं- नृत्य पौर सुरापान इनके प्रिय विषय हैं। यक्षों की यथा, जन्म, शाम-प्राप्ति, धर्म-चक्र-प्रवर्तन तथा प्रतिमाएं मथुरा कला में सबसे अधिक मिलती हैं। परिनिर्वाण---भी मथुरा कला में अंकित मिलती हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण परखम नामक गांव से प्राप्त लगभग ई०पू०२०० में निर्मित विशालकाय यक्षकला में नारी चित्रण मूर्ति है। एक दूसरी बड़ी मूर्ति मथुरा के बड़ौदा मधुरा के वेदिका स्तंभों पर विविध मनोरंजक गांव से प्राप्त हई है। ये मूर्तियां चारों ओर से कोर चित्रण मिलते हैं : मुक्ताप्रथित केश-पाश, कर्ण कर बनाई गई हैं, जिससे उनका दर्शन सभी दिशानों कुडल, एकावली, गुच्छकहार, केयूर, कटक, मेखला, से हो सके । कुषाण काल में ऐसी ही मूर्तियों के नूपुर मादि धारण किए हुए स्त्रियों को विविध समान विशालकाय बोधिसत्व प्रतिमाएं निमित पाकर्षक मुद्रामों में दिखाया गया है । कहीं कोई की गई। युवती उद्यान में फूल चुन रही है, कोई कंदुक यक्षों में कुबेर तपा उनकी स्त्री हारीती का क्रीड़ा में लग्न है, कोई प्रशोक वृक्ष को पैर से स्मान बड़े महत्त्व का है। इनकी अनेक मूर्तियां ताड़ित कर उसे पुष्पित कर रही है, या निझर में मथुरा में प्राप्त हुई हैं । कुबेर यक्षों के अधिपति स्नान कर रही है अथवा स्नानोपरांत तन ढक रही तथा धन के देवता माने गये हैं। बौद्ध, जैन तथा है। किसी के हाथ में वीणा या वंशी है तो कोई हिन्दू-इन तीनों धर्मों में इनकी पूजा मिलती है। प्रमदा नृत्य में तल्लीन है । कोई सुन्दरी स्नानागार कुबेर जीवन के प्रानन्दमय रूप के द्योतक हैं और से निकलती हई अपने बाल निचोड़ रही है और इसी रूप में उनकी अधिकांश मूर्तियां मिलती हैं। नीचे हंस गिरती हुई पानी की बूदों को मोती समझ कर अपनी चोंच खोले खड़ा है। किसी स्तम्भ पर पक्षों की तरह प्राचीन बृज में नागों की पूजा वेणी-प्रसाधन का दृश्य है, किसी पर संगीतोत्सब बहुत प्रचलित थी। नाग और नागिनियों की बहका पौर किसी पर मधुपान का । इस प्रकार लोक- संख्यक मूर्तियाँ ब्रज में मिली हैं। इनकी पजा जीवन के कितने ही दृश्य इन स्तम्भों पर चित्रित समृद्धि और संतान करने वाली मानी जाती थी। हैं । कुछ पर भगवान् बुद्ध के पूर्व जन्मों से सम्बन्धित ब्रज में शक भौर कुषाण शासकों की अनेक विभिन्न जातक कहानियाँ और कुछ पर महाभारत महत्वपूर्ण मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं । इस प्रकार की प्रादि के रश्य भी हैं। इसके अतिरिक्त अनेक मूर्तियां भारत में अन्यत्र नहीं मिली। कुषाण राजा प्रकार के पश-पक्षी, लता-फूल प्रादि भी इन स्तम्भों विमर्कड फिसेस, कनिष्क प्रादि शासकों तथा शकपर उत्कीर्ण किए गए हैं। इन वेदिका स्तम्भों को रानी कंबोजिका की प्रतिमाएं अब तक प्राप्त हो शृगार और सौन्दर्य के जीते-जागते रूप कहना चुकी हैं। शासक लंबा कोट तथा सलवार के ढंग का चाहिए, जिन पर कलाकारों ने प्रकृति तथा मानव पायजामा पहने दिखाये गए हैं। कम्बोजिका को जगत् को सौंदर्य राशि बिखेर दी है । भारतीय कला भारतीय साड़ी पहने दिखाया गया है । ईरानी तथा में इन वेदिका-स्तम्भों का विशेष स्थान माना यूनानी पुरुष-प्रतिमानों के कई सिर भी मथुरा-कला जाता है। में प्राप्त हुए हैं। यक्षादि मूर्तियाँ लोकजीवन का चित्रण मपुरा-कला में यक्ष, किभर, गन्धर्व, सुपर्ण मथुरा-कला में विविध धर्मों के देवों की अनेक तथा अप्सरामों की अनेक मूर्तियां मिलती हैं। ये प्रकार की मूर्तियों के मिलने के अतिरिक्त ऐसी
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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