SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मथुरा की प्राचीन कला में समन्वय भावना कृष्णदत्त वाजपेयी उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में मथुरा - प्रागरा के जिले तथा उनके समीपवर्ती क्षेत्र ब्रज के नाम से प्रसिद्ध हैं । ब्रज का प्राचीन नाम " सूरसेन जनपद" था, जिसकी राजधानी मथुरा थी। इसी मथुरा में भगवान् कृष्ण ने जन्म लेकर ब्रज में अनेक लीलाएं कीं। शैव तथा शाक्त मतों का विकास भी ब्रजभूमि में बहुत प्राचीन काल से प्रारम्भ हुआ । धीरे-धीरे नगरी भागवत या वैष्णव धर्म का मथुरा प्रमुख केन्द्र बन गई । ईसा से कई शताब्दी पूर्व मथुरा में एक बड़े जैन स्तूप का निर्माण हुआ, जिसका नाम “वोदू” स्तूप था। जिस भूमि पर यह स्तूप बनाया गया वह अब कंकाली टीला कहलाता है। इस टीले के एक बड़े भाग की खुदाई पिछली शताब्दी के मंतिम भाग में हुई थी, जिसके फलस्वरूप एक हजार से ऊपर विविध मूर्तियां मिली थी। हिन्दू पौर बौद्ध धर्म सम्बन्धी कुछ safrat मूर्तियों को छोड़ कर इस खुदाई में प्राप्त शेष सभी मूर्तियाँ जैन धर्म से सम्बन्धित थीं । उनके निर्माण का समय ई० पू० २०० से लेकर ११०० ई० तक ठहराया गया है। कंकाली टीला तथा व्रज के अन्य स्थानों से प्राप्त बहुसंख्यक जैन मंदिरों एवं मूर्तियों के अवशेष इस बात के सूचक हैं कि यहाँ एक लंबे समय तक जैन धर्म का विकास होता रहा । बौद्धों ने भी मथुरा में अपने कई केन्द्र बनाये, जिनमें तीन मुख्य थे। सबसे बड़ा केन्द्र उस स्थान के पास-पास था जहाँ प्राजकल कलक्टरी कचहरी है। दूसरा शहर के उत्तर में यमुना किनारे गोकर्णेश्वर धीर उसके उत्तर की भूमि पर था तथा तीसरा यमुना तट पर ध्रुवबाट के प्रासपास था । प्रनेक हिन्दू देवताओं की प्रतिमानों की तरह भगवान बुद्ध की मूर्ति का निर्माण भी सबसे पहले मथुरा में ही माना जाता है । भारत के प्रमुख धर्म भागवत, शैव, जैन तथा बौद्ध ब्रज की पावन भूमि पर शताब्दियों तक साथ-साथ पल्लवित पुष्पित होते रहे। उनके बीच ऐक्य के अनेक सूत्रों का प्रादुर्भाव ललित कलाओं के माध्यम से हुआ, जिससे समन्वय तथा सहिष्णुता की भावनाओं में वृद्धि हुई । देशी और विदेशी कला का सम्मिश्रण भारत का एक प्रमुख धार्मिक तथा कला केन्द्र होने के नाते मथुरा को बड़ी ख्याति प्राप्त हुई । ईरान, यूनान और मध्य एशिया के साथ मथुरा का सांस्कृतिक सम्पर्क बहुत समय तक रहा। उत्तरपश्चिम में गंधार प्रदेश की राजधानी तक्षशिला की तरह मथुरा नगर विभिन्न संस्कृतियों के पारस्परिक मिलन का एक बड़ा केन्द्र हो गया। इसके फलस्वरूप विदेशी कला की अनेक विशेषताओं को यहाँ के कलाकारों ने ग्रहण किया भीर उन्हें देशी तत्वों के साथ समन्वित करने कुशलता का परिचय दिया । तत्कालीन एशिया तथा यूरोप की संस्कृति के अनेक उपादानों को प्रात्मसात् कर उन्हें भारतीय तत्वों के साथ एकरस कर दिया गया। शत्रों तथा कुषाणों के शासनकाल में मथुरा में जिस मूर्तिकला का बहुमुखी विकास हुआ उसमें समन्वय की यह भावना स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है । प्राचीन मथुरा में मंदिरों तथा मूर्तियों के निर्माण में प्रायः साल बलुए पत्थर का प्रयोग होता था । यह पत्थर मथुरा के समीप तांतपुर, फतेहपुर सीकरी, रूपवास आदि स्थानों में मिलता है और मूर्ति गढ़ने के लिए मुलायम होता है ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy