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________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ हुमा परन्तु उनका प्रभाव अवश्य पड़ा और उनमें लनों में क्योंकि मेरा जन्म दि० जैन समाज में से कुछ पान्दोलन काफी मात्रा में सफल हुए। हुका पौर काफी समय तक में दिगम्बर बन समाज का पंडित और कार्यकर्ता रहा है। मुझ से पहले पर स्थानकवासी समाज के भी दो टुकड़े हुए। दि. जैन समाज के चार पान्दोलनों का तो मुझे इनमें से एक तेरापंथ संप्रदाय भलग निकला जिसने ठीक तरह से पता है । दस्सों को पूजा का अधिकार निवृत्तिवाद की परिसीमा पर पहुंचने की कोशिश देने के बारे में एक प्रान्दोलन खड़ा हुवा थी जिसका की। सब जीव अपने अपने कर्मफल का भोग कर नेतत्व स्व. पं. गोपालदास जी बरैया ने किया रहे हैं इसलिये उसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिये। था। प्रब काफी अंशों में यह सफल है। " इसलिये यदि कोई भाग में फंस कर मर रहा है। एक मान्दोलन शास्त्र छपाने के बारे में भी था। तो उसे क्यों बचाना चाहिये, मादि विधान बने । । हालां कि ऐसी बातों के समर्थन से अब बचा जाता शास्त्र छपाने के पक्ष में अनेक लोग थे। विरोध में है और ग्राम जनता के सामने ऐसी बातें नहीं कही स्वर्गीय सेठ जम्बूप्रसाद जी सहारनपुर वाले थे। जाती फिर भी पथकता का प्राधारभत सिद्धांत यह पान्दालन मा सफल हुआ। वही है । जैन समाज में यह संप्रदाय भी काफी : शास्त्र सुधार मादि के कुछ मान्दोलन स्वर्गीय प्रभावक है। जन संख्या में भी एक लाख की संख्या श्री सूरजभानजी वकील ने किये थे जो दब गये। तक फैला हुआ है । दिगम्बर समाज में जो तेरापंथ विधवा विवाह के प्रचार के लिये स्वर्गीय है उससे इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। तथा उनकी श्रीदयाचन्दजी गोयलीय ने किया था जो उन्हीं के नीति में भी कोई मेल नहीं है। साथ समाप्त हो गया था। इन भान्दोलनों के स्थानकवासी संप्रदाय में अनेक प्राचार्यों को समय में बालक या विद्यार्थी ही था। इसलिये मिटा कर एक प्राचार्य बनाने का प्रान्दोलन चला इनमें मेरा कोई हाथ नहीं था। और वह बाहरी दृष्टि में सफल भी हमा। भीतर फरवरी सन १९१६ में मैं बनारस के स्यावाद ही भीतर द्वन्द्व है फिर भी एक प्राचार्य बन गया महा विद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्त हवा है। मूर्ति पूजक सम्प्रदाय में बालदीक्षा को रोकने और उसी वर्ष एक बंन पत्र का संपादक भी बना। के लिये प्रान्दोलन खड़ा हमा और इस निमित्त से सन् १९२० में मेरे विचारों में जन शास्त्रों के सूधारकों का एक संगठन 'जैन यूवक संघ' के नाम चिन्तन मनन के फलस्वरूप क्रान्ति हई और उसके से बना । जहां तक विचारों का सवाल है बम्बई में वह संघ काफी प्रभावक है। बाल दीक्षाएं रुकतो बाद ही पान्दोलनों का प्रारंभ हुवा। नहीं सकी हैं फिर भी कम हो गई हैं और उनके पहिले सो मेरे पान्दोलन विवाह शादी के रीति विरोध में आवाज भी उठती है। बडौदा जब अलग रिवाजों को लेकर हए और वे परवार जाति में राज्य था तब बालदीक्षा के विरोध में कानून भी थे जो कि पूरी तरह सफल हो गये। बनवा दिया गया था। परन्तु सबसे तीव्र पान्दोलन दि.जैन समाज मूर्ति पूजक समाज और स्थानकवासी समाज में जाति पाति तोड़ने का था जो भाग से करीब से भी मेरा सम्बन्ध काफी रहा है । और एक कार्य- ४२ वर्ष पहले शुरू हुमा था जिसका पूरा मौर वार्ता के रूप में रहा है। इसलिये इन आन्दोलनों मुख्य नेतृत्व मुझे करना पड़ा था। 'विजातीय में थोड़ा बहुत हिस्सा मेरा भी रहा है। परन्तु विवाह मीमांसा' नाम से मेरा एक ट्रेक्ट दिल्ली में प्रभावक हिस्सा रहा है दि० जैन समाज के प्रान्दो- जोहरीमलनी सर्राफ ने छपवाया था और वह पूरा
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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