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जैन संस्कृति में नारी के विविध रूप
जमाई बनाकर रखती थी ।" कुछ ऐसे विवाहों का भी उल्लेख मिलता है जिनमें परस्पर बहिन बदल कर लोग विवाह कर लेते थे। देवदत्त ने अपनी बहिन की शादी घनदस से की थी और उसकी बहिन को अपनी पत्नि बनाया था। इससे यही प्रतीत होता है, कन्यायें परिवार की भलाई के लिए विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में भी विरोध नहीं करती थीं ।
एक प्रोर कन्यायें जहाँ विवाह के लिए स्वतंत्र थी वहाँ दूसरी प्रोर उनका मपहरण भी कम नहीं होता था। विवाह का एक यह भी प्रकार था । वासवदत्ता उदयन के द्वारा, सुवर्ण गुलिका दासी राजा प्रद्योत के द्वारा, रुक्मरिण कृष्ण के द्वारा और चलना राजा श्रेणिक के द्वारा अपहृत की गई थीं । किन्तु इन कन्याओंों ने, प्रपहरण द्वारा लादी जाने पर भी अपने पतियों का जितना सुधार किया था शायद ही कोई व्याहकर लायी हुई पत्नी करती ।
वैवाहिक परम्परा के अवलोकन से यही प्रतीत होता है कि नारी को अनेक कठिनाईयों से गुजरना श्रवश्य पड़ा किन्तु उसको प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आई । यहाँ हमें नारी की दुर्बलता कहीं देखने को नहीं मिलती, भले उसे परवशता सहन करनी पड़ी हो । बौद्धिक नारियां
जैन संस्कृति के निर्माण में जितना योगदान पुरुषों का है उतना नहीं, तो भी नारियों का सहयोग कम नहीं है। भ्राज नारियां पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर चलने की बात करती हैं, उस समय वे चलती थीं। उन्होंने अपने जीवन की प्राहुति मात्र पति की सेवा करने में ही नहीं देदी बल्कि समय
१. नायाधम्मका १६, पृष्ठ १६६ २. पिधानयुक्ति पृष्ठ ३२४.
३. नायाथम्म कहा १६ पृष्ठ १८६.
४. नायाम्म कहा २, पृष्ठ २२०-२३०
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समय पर विदुषी, धर्मपरायण, वीराङ्गना श्रीर कर्तव्यनिष्ठ होकर यह भी साबित कर दिया है कि नारी चरण दाबने के प्रतिरिक्त और भी बहुत कुछ जानती है; कर सकती है ।
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विदुषी - विद्वता के क्षेत्र में हम ब्राह्मी, सुन्दरी चन्दनबाला, जयन्ती श्रादि का नाम गवं पूर्वक ले सकते हैं जिन्होंने अपनी विद्वत्ता के द्वारा भारतीय नारी का मस्तक ऊँचा उठाया है । चन्दनबाला वह प्रथम बाला है जो प्राजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर कई वर्षों तक भगवान महावीर के नारीसंघ की अधिष्ठात्री रही, जिसमें करीब छत्तीस हजार
धार्यिकाएं थीं। जैन कथा ग्रन्थों में भी अनेक कुशल उपदेशिकाओं और अध्यापिकाओं का उल्लेख मिलता है । सोम शर्मा की पुत्री तुलसा और भद्रा विद्वत्ता में जगत प्रसिद्ध थीं।
अनेक नारियां विदुषी होने के साथ साथ लेखिका और कवियित्री भी हुई हैं। लेखिकाओं में गुणसमृद्धि, पद्मश्री, हेमश्री, सिद्धश्री, विनयचूल, हेर्मासद्धि, जयमाला आदि प्रमुख नारियां हैं जिनकी रचनाएँ श्वेताम्बर साहित्य में सुरक्षित हैं। रामति भार्यिका का 'जसह चरिउ' और राममती का 'समकितसार' मे दोनों ग्रन्थ इन लेखिकामों की विद्वता प्रगट करते हैं । " कुछ ऐसी महिलामों का भी उल्लेख मिलता है जिन्होंने स्वयं तो ग्रन्थ नहीं लिखे किन्तु प्रनेक ग्रन्थों की प्रतिलिपियां लिख-लिखा कर साधुओं मोर विद्वानों को भेंट की थीं। यह कार्य १४-१५ वीं शताब्दी में अधिक हुआ है। अनुलक्ष्मी, प्रसुलधी, प्रवन्ती, सुन्दरी, माधवी श्रादि जन साहित्य की प्रमुख कवियित्रियां हैं, जिन्होंने प्राकृत संस्कृत भादि भाषाओं में अपनी लेखनी चलायी है।"
५. हरिवंश पुराण पृष्ठ ३२६
६. पं. चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ४८१ ७. वही पृष्ठ ४८३
८. प्रेमी प्रभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ६७०