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जीवन की बहुत सी बड़ी बातों को हम तब पहिचान पाते हैं । जब उन्हें खो देते हैं।
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बुरा तो अच्छे का दुश्मन नहीं हुवा करता। अच्छे का दुश्मन तो वह है जो उससे और भी अच्छा है। वह "और भी अच्छा" जिस । दिन अच्छे के समक्ष उपस्थित होकर प्रश्न का उत्तर चाहता है उस ● दिन उसी के हाथ में राजदण्ड सोंपकर इस 'अच्छे' को अलग हो जाना पड़ता है।
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संसार में जितने पाप हैं उन सबसे बड़ा पाप देश द्रोह है।
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इस संसार में भलाई करने का भार जिसने भी अपने ऊपर ॥ लिया है उसके शत्रुओं की संख्या सदा ही बढ़ती रही है। किन्तु इस भय से जो लोग पीछे हट जाते हैं, अगर उन्हीं में तुम भी जाकर मिल जाओगे तो कैसे काम चलेगा ?"
-बाबूजी की डायरी से