________________
बाबू बोटेहाल जेन स्मृति प्रन्य काविबेस रस सलिलें सिंधिय
कुप दोहर भुय जुयल बयण ससि जिय कमल उप्पल । वेवइ वलइ धुलइ रोमंचिय ।
पडम. दलारुण करवलगु, तबिय कणय. गोरंगु । इस काव्य में कवि का वस्तृवर्णनकौशल एवं प्रव परिस बउ पह हुयउ समहिय विजिय मणगु । प्रबन्धपटुवा दर्शनीय है। जसहरचरिउ
प्रकृतिवणन परम्परानुसार होते हुए भी भाषा 'जसहर चरिउ' पुष्पदन्त रचित चार संधियों में सौन्दर्य प्रवक्ष्य है-'तारय-वसण कलयलंत का एक लघु खण्डकाव्य है जिसमें यशोवर राजा का वरु सिहर पस्थिय । चरित्र वणित है। इसमें कापालिक मत के ऊपर परिसंदिर कुसुम-महु-विदु मिसिणए पई बहुजैनधर्म की विजय जन्मजन्मान्तरों की अत्यन्त
क्खिय।" जटिल कथा के प्राश्रय से कही गई है। राजानों के पर्थात् प्रभातकाल में तारकरूपी वस्त्र खिसक गए, छल-कपट, परस्त्री और पुरष में अनुरक्ति, सत्या, वरूशिखरों पर पक्षो कलरव करने लगे और विशाल प्रवंचना, चोरी आदि के बोलते चित्र बड़े किए गए नेत्रों जैसे कमलों से मधुबिंदु टपकने लगे। हैं । उदाहरणार्थ कापालिक भैरवानंद.का.बखन रागरजित वर्णन में भाषा भी रंगीन हो देखिए-"वव वाली टोपी सिर पर दे रखी उठती हैहै जिससे दोनों करण लॅक गए हैं: हाय में ३२ बंगुल - "वज्जत गज्जत बहु-भेय तूरं . का दण्ड है गले में विचित्र पोनपटा है। गली गली लभिज्जतं दिज्जत कप्पूर पूर चंग खडकाते और सिंगा बजाते भैरवानव दम्भपूर्वक
पण च्चंत गच्चंत वेसा समूह घूमता है।"
दसिज्जत हिड्डत वाक्यरणतूहं ।" इत्यादि हरिभद्रसूरि
हरिभद्रसूरि का काल अभी निणीत नहीं है- 'प्रबन्धर्षितामणि' और 'कुमारपालप्रतिबोध' मनि जिनविजय के अनुसार इनका समय संवत विक्रम की ग्यारहवीं शती में मेरुतगत ७५७ प्रौर ८२७ के मध्य रहा होगा और राहल
'प्रबन्धचितामणि' और सोमप्रभकृत "कुमारपालसांकृत्यायन के अनुसार संवत् १२१६ के मासपास।
प्रतिबोष' दोनों ही शिथिल प्रबन्धकाध्य हैं। दोनों उनके दो खण्डकाव्य 'मिणाह परित' और में कथाघों का विस्तृत संचय है और साहित्यिक 'जसहर चरिउ' सुन्दर रचनाएं हैं।
सौन्दर्य कम है। नीति वाक्यों में दोनों ग्रंथ सम्पन्न 'जसहरचरिउ' और 'णेमिणाहचरित'
हैं । प्रबन्धचितामणि का अधिक मूल्य उसमें निहित
र ऐतिहासिक वृत्तों के कारण है। ___ 'जसहर चरिउ' सुन्दर होते हुए भी नावीन्य से पता रहित है और पुष्पदन्त की कृति उससे अधिक पढ़ता सुदंसण चरिउ से निबद्ध है पर 'रणमिरगाह चरिउ' में तीर्थकर
- विक्रम को बारहवी शती मे रणयरण दि मुनि नेमिनाथजी के चरित्र का वर्णन कर कवि ने धवल
न की कृति सूदंसरण चरिउ महत्त्वपूर्ण है । बारह यश अजित किया है। सात सन्धियों और ८०३ संधियों में रचित इस सुदर्शन चरित्र में पचनमएलोक प्रमाण के इस खण्डकाव्य की भाषा प्रति स्कार-प्रतिदिन प्रहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय अलंकृत और समासबहला है। सा
Panोटी और सर्वसाधु को-का महत्व प्रदर्शित है। प्रेम सम्पन्न इस कृति में पुरुषसौन्दर्य का एक चित्र कथा को लेकर लिखे गए इस मंच में शुगार रस देखिए
की प्रधानता होते हुए भी काम्य का पर्यवसान शांत नील कुतल कमल नपणिल्लु बिबाहरु सिपदसए। रस में ही हुआ है। इसमें नायिकाभेद, नखशिखकबुग्गीवुपुर अररि उरयलु ।
वर्णन, प्रादि के साथ ही प्रकृति के भो सुरम्य चित्र