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________________ हिन्दी आदिकाल के जैन प्रबन्ध काव्य श्याम वर्मा एम०एससी०, एम० ए० (संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी ) साहित्यरत्न, मायुर्वेदरत्न अपभ्रंश भाषा के गर्भ से हिन्दी का उदय कब हो गया यह जानने के लिए कोई निर्विवाद प्रणाली आज उपलब्ध नहीं है। अपभ्रंश के यहा कवि स्वयंभुदेव को हिन्दी का महाकवि घोषित किया जा चुका है क्योंकि उनकी भाषा वास्तव में प्राचीन हिन्दी का रूप ही है । विक्रम की प्राठवीं शताब्दी के इस महाकवि से चौदहवीं शताब्दी तक के काल में जैन कवियों द्वारा रचित प्रबन्ध काव्यों का संक्षिप्त पर्यालोचन प्रस्तुत निबन्ध में किया जायगा । श्री नाथूराम प्रेमी की एक टिप्पणी स्वर्गीय श्री नाथूराम प्रेमी ने 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' में उस समय उपलब्ध हिन्दी जैन साहित्य के विषय में विचार करते हुए लिखा था - " यह हमें मानना पड़ेगा कि जैन कवियों में उच्च श्रेणी के कवि बहुत ही थोड़े हुए हैं ।....जो उच्च श्रेणी के कवि हुए हैं उन्होंने प्रायः ऐसे विषयों पर रचना की है जिनको साधारण बुद्धि के लोग बहुत कठिनाई से समझ सकते हैं।.... साधारणोपयोगी प्रभावशाली चरितकाव्यों का जैनसाहित्य में प्राय प्रभाव है मोर जैन समाज तुलसीकृत रामायण जैसे उत्कृष्ट ग्रन्थों के मानन्द से वंचित है । शीलका और खुशालचंदजी के पद्मपुराण शादि की निःसत्व कविता को पढ़ते-पढ़ते जनसमाज शायद यह भूल ही गया है कि अच्छी कविता कैसी होती है ।" यह साहित्य महत्वपूर्ण है परन्तु यह मार्मिक बात विक्रम संवत् १९७४ में लिखी गई थी। और तदनंतर अनेकानेक सुन्दर जैनकाव्यों के प्रकाश में भाने से हिन्दी काव्य के क्षेत्र में जैनप्रतिभा के प्रति लोकश्रद्धा में वृद्धि हुई है । डा० हरमन याकोबी, श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल मुनि जिन विजय, प्रोफेसर हीरालाल जैन, डा० परशुराम वंद्य, पं० लालचन्द गांधी, डा० जगदीशचन्द्र जैन, डा० प्रल्सफोर्ड, श्री राहुल सांकृत्यायन, श्री नाथूराम प्रेमी, श्री कस्तूरचंद कासलीवाल प्रभृति विद्वानों के परिश्रम से जैन साहित्य बहुत कुछ अन्वेषित, सुसम्पादित एवं प्रका शित हुआ है। अब तो जैन प्रबन्ध-काव्यों का प्रभाव जायसी, तुलसी प्रादि महाकवियों पर सिद्ध करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऐसे दावेदारों में श्री राहुल सांकृत्यायन का नाम विशेष उल्लेख्य है । उन्होंने न केवल स्वयंसुदेव को हिन्दी का सर्वोत्तम कवि ही घोषित किया अपितु तुलसी को स्वयंभु का धनुकर्ता भी माना है। इस प्रतिशयोक्ति पर टिप्पणी निरर्थक है । दलविशेष या सम्प्रदाय विशेष reat विचारधारा विशेष से बंधकर यदि न सोचा जाय तो उपनिर्दिष्ट ६०० वर्षों के उपलब्ध हिन्दी जैन प्रबन्ध काव्यों का पर्यवेक्षरण कर निष्पक्ष सहृदय मालोचक यह कहने को बाध्य होगा कि यह साहित्य विशाल न होते हुए भी महत्वपूर्ण है । इन प्रबन्धकाव्यों में सौन्दर्य, स्नेह, साधना, संन्यस्त जीवन, संग्राम भादि विविध व्यापारों को छन्दों के कलात्मक परिधान, अलंकारों की कमनीय छटा एवं भाषा के परिष्कृत रूप के साथ सरसता पूर्वक चित्रित किया गया है। प्रबन्धकाव्यों के दो भेद प्रबन्धकाव्यों के दो भेद मान्य हैं—महाकाव्य
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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