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महाकवि रइधू युगीन अग्रवालों की साहित्य सेवा प्रध्यात्म और प्राचारमूलक साहित्य का निर्माण एवहिं महु विरणत्ति पमाणहिं । किया है उसमें उक्त रचना सबसे अधिक महत्वपूर्ण सच्छ दि गामक्खा ठाणहि ॥ है। इस ग्रन्थ की शैली नयसेनाचार्य के कड ग्रन्थ
(सम्मत्त० १।१४।८-१२.) 'धर्मामय के समान है नयसेन ने सम्यग्दर्शन और पंचारवतों का कथन प्रबन्धात्मक पति पर किया संघवी कमलसिंह मुद्गल गोत्र के थे। इनके बाबा है। रइधू की शैली यह है कि प्रारम्भ में वह विषय का नाम भोपा साह था, जो ग्वालियर के निवासी का स्वरूप बिश्लेषण, महत्व प्रादि के कथन के थे। इनके चार पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र खेमसिंह ही मनन्तर किसी पाख्यान के माध्यम से विशेषतामों कमलसिंह के पिता थे। कमलसिंह का एक छोटा का प्रदर्शन करता है तथा बाद में अपना निष्कर्ष भाई भी था जिसका नाम भोजराज था। यह परिउपस्थित करता है । रचना बड़ी ही सरस एवं वार विद्याव्यसनी एवं साहित्यरसिक था। कमलमामिक है।
सिंह ने तो उक्त "सम्मत्तगुणरिणहारणकच" के लिये “सम्मत्त गुरपग्गिहारगकव्व" की माद्यन्त प्रश
कवि को प्रेरित पिया ही, छोटे भाई भोजराज ने स्ति में कवि ने कमलसिंह के लिये अग्रवाल कुल
भी अपने पिता की अनुमोदना से कवि से अनुनयकुमुदचन्द्र' एवं विज्ञानकलागुणश्रेणीयुक्त' कहा
विनय करके अपने लिये प्राकृत-गाथा निबद्ध "सिद्धहै। इन विशेषग्गों में तथा कमलसिंह के उपयुक्त
तत्पसार" ४ नामक एक विशाल सिद्धान्त प्राचार कार्यों में पर्याप्त समानता है। रइधु की हर कृपा अध्यारम एवं दर्शन विषयक ग्रन्थ का प्रणयन के प्रति कमसिह प्राभारी थे। वे अत्यन्त गदगद कराया था। प्रस्तुत ग्रन्थ में १३ अंक एवं १६३३ होकर तथा 'बालमित्र' कहकर उनसे निवेदन ।
गाथाएं हैं। इसमें कवि ने प्रसंगवश संस्कृत-प्राकृत करते हैं:
के कुछ ऐसे नेतर उद्धरण भी दिये हैं जिनके
सन्दर्भ का कुछ भी पता नहीं चलता। इस ग्रन्थ में तुहु पुणु कबरयरण रयरणायरु ।
कवि ने सम्यग्दर्शन, जीव-स्वरूप, गुग्णस्थान, क्रियाबालमित्त प्रम्हहं रणेहाउरु ॥
भेद, कर्म, श्रुतांग, लब्धि, अनुप्रेक्षा, धर्म एवं ध्यान तहु महु सच्चउ पुग्ण महायउ ।
इन दश विषयों पर मुन्दर एवं मार्मिक विवेचन महु मरिणच्छ पूरण भरगुरायउ॥
किया हैजिण पयट्ठ महु णिरुपय होति । चडिय पवारण गुणेरण महंति ॥ दसण जीवसरूवं गुण ठाणाणं पि भेय किरियाय । पइ पुरा विरयइ सच्छ भरणेयई। कम्मं सुयंग लदी परशुवेहा धम्म झारणं व ॥ परिय पुराणागम बहुमेयई ॥
सिद्धान्त. ११५.
४-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री द्वारा सम्पादित एवं सरस्वती मन्दिर प्रोरा द्वारा प्रकाशित. १-सम्मत्त गुरपरिणहारण कव्व.४।३५। ३. २-वहीं ४ । ३५ । ११. ३-शिलालेख संग्रह (माणिक• सीरीज) तृतीय भाग के लेखाकू ६३३ (पृ. ४८३) में प्राप्त
वंशावली में भोपा साहू के पांच पुत्रों का उल्लेख है। उसके पांचवें पुत्र 'पाल्का' को रइधू ने
चतुर्थ पुत्र कहा है तथा शिलालेख के चतुर्थ पुत्र धनपाल का रइधू ने उल्लेख नहीं किया। ४-यह प्रति हस्तलिखित रूप में राजस्थान जैन शास्त्र भण्डार जयपुर में सुरक्षित है।