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महाकवि रइधयुगीन अग्रवालों की साहित्य सेवा
प्रो० दा० राजाराम जैन M. A., Ph. D. भारा. महाकवि रइधू साहित्य-गगन के ऐसे उज्जवल उत्तरभारत-विशेषतः मध्यभारत-की ऋद्धि-समृद्धि
नक्षत्र थे, जिन्होंने अपनी दैवी-प्रतिभा से मादि की प्रामाणिक जानकारी के लिये रइधू-साहित्य मध्यकालीन समाज एवं राष्ट्र के अन्तर्तम को प्रदीप्त का महत्व एक विश्वकोष से कम नहीं ठहरता । किया था। विविध राजनैतिक प्राक्रमणों की बोछारों
___ महाकवि रहबू तथा उनके साहित्य के स्मरण से सन्तप्त, त्रस्त एवं उत्पीड़ित मानव-क्रन्दन की के समय उस वर्ग को निश्चय ही विस्मृत नहीं किया करुण पुकार पर लोकनायक की तरह उन्होंने अपने जा सकता. जिसके स्नेह में पगकर रइधू की प्रतिभा को सजग किया और सरस्वती के वरद पुत्र बनकर मुखरित हई, भावना को प्रोजस्वी वाणी मिली और जो अमृतत्व का दान दिया वह भारतीय साहित्ये
निरन्तर प्राप्त हुई प्रेरणाओं से जिसे विस्तार तिहास के एक विशिष्ट प्रध्याय के रूप में सदा सुर
मिलता रहा। यह वह वर्ग है जो आज "अग्रवाल क्षित रहेगा।
जाति" के नाम से जाना जाता है। रइधू ने इसे ___रइधू, जिनका कि समय वि.सं. १४५०-१५४६ "अगोय' (भप्रोत) "प्रयरवाल" (प्रप्रवाल) मादि के लगभग निर्धारित किया गया है, ने अपने जीवन- नामों से सूचित किया है । इस जाति के उद्भव और काल में कई ग्रन्थों का प्रणयन किया था. जिनमें से विकास के सम्बन्ध में विविध मत-मतान्तर हैं लेकिन लगभग तीस ग्रन्थों का पता चल सका है और अभी निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि इसके तक चौबीस रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं, जो कार्यों ने राष्ट्रीय एवं सामाजिक क्षेत्र में सदैव चार पुराण, चरित, प्रारुपान, सिवान्त, प्राचार, अध्यात्म चाँद लगाए हैं। समाज एवं राष्ट्र की हर परिस्थिति एवं दर्शन प्रादि विषयों से सम्बद्ध हैं।' उक्त समस्त में इस वर्ग के नेता अपवा अनुयायी बनकर प्रत्यक्षतः साहित्य पद्यमय है और काव्यशास्त्र की प्रायः सभी अथवा परोक्षतः तन, मन एवं धन सभी दृष्टिकोणों विधामों से अलंकृत है। उनकी भाषा सन्धिकालीन से यथाशक्ति सक्रिय सहयोग किया है। अपभ्रंश है, किन्तु कुछ ग्रन्थ प्राकृत एवं हिन्दी तथा महाकवि रइधू का साधना केन्द्र ग्वालियर था। कुछ पा संस्कृत के भी उपलब्ध हैं । समग्र रइधू- उसे कवित्व शक्ति एवं प्रभाव पैतृक विरासत के साहित्य प्रभी अप्रकाशित ही है और हस्तलिखित रूप में उपलब्ध हुए थे; किन्तु साधनाभाव में प्रस्त रूप में उत्तर भारत के शास्त्र मण्डारों में यत्र-तत्र कवि प्रतिभा के प्रवरोष की स्थिति ग्वालियर तथा सुरक्षित है । भारतीय मध्यकालीन इतिहास, संस्कृति, सुदूर देशवासी विद्यारसिक भगवालों से छिपी न पूर्ववर्ती, एवं समकालीन साहित्य तथा साहित्यकारों, रही । शीघ्र ही अग्रवाल कुल शिरोमणि कमलसिंह भट्टारकों, मध्यकालीन राजनैतिक, आर्थिक एवं संघवी, जैन कुलावतंस खेमसिंह, अग्रवाल कुलकुमुदसामाजिक परिस्थितियों, समकालीन राजामों, ग्या- चन्द्र हरसी (हरिसिंह) साहू प्रभृति परिचित एवं लियरनगर एवं दुर्ग का नमूत्ति कला वैभव एवं अपरिचित कई प्रतिष्ठित नागरिक एवं नगरसेठ उनके
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१. रइधू के व्यक्तित्व एवं कृतिस्व की विस्तृत जानकारी के लिये "अपनश भाषा के सन्धिकालीन
महाकवि रइधू" नामक हमारा निबन्ध, जो कि 'भिक्षु स्मृति अन्ध' कलकत्ता (१९६१) में प्रकाशित