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________________ बायू बोदलाल जैन स्मृति प्रथ निचोल का अर्थ प्रच्छद पट अर्थात बिछाने का प्राकाश-सक्ष्मी के भवन में चन्दोवा सा बन रहा चादर किया है। 13 क्षीरस्वामी ने इसे पोर था। भी अधिक स्पष्ट किया है कि जिससे शय्या मादि एक दूसरे प्रसंग में सोमदेव ने लिखा है कि प्रच्छादित की जाए उसे निचोल कहते हैं। १३७ प्रसूताचल पर रहने वाले साधुओं ने अपने प्रवान शब्दरत्नाकर में भी निचोलक, निचुलक, निचोल सूखने के लिए वितान (चन्दोवा) की तरह डाल निचोलि और निचुल ये पांच शब्द प्रच्छादक वस्त्र रखे थे। चण्डमारी के मन्दिर में पुराने के लिए भाए हैं। १३८ यही भयं यशस्तिलक में चमड़े के बने वितान का उल्लेख है । भी उपयुक्त बैठता है। सोमदेव ने लिखा है कि अमरकोप में उल्लोच और धितान समानार्थी काले काले मेध पृथ्वी-मण्डल पर इस तरह छा शट। गये, जैसे नीला प्रच्छदपट बिछा दिया हो। १३॥ इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन भारतीय चन्दौवा-चन्दौवा के लिए यशस्तिलक में वस्त्र एवं वेश भूषा के अध्ययन के लिये यशस्सिलक सिचयोल्लोच तथा वितान शब्द पाए हैं। सोमदेव चम्पू एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिससे तत्कालीन ने लिखा है कि राजपुर में गगनचुम्बी शिखरों पर भारतीय एवं विदेशी वेश भूषा पर पर्याप्त प्रकाश लगे हुए सुवर्ण-कलशों से निकलने वाली कान्ति से पड़ता है । १३६. निचोलः प्रच्छदपटः, अमरकोष, २, ६, ११५ १३७. निचोलते अनेन निचोलः येन तूलशयादि प्रच्छाद्यते, वही, सं० टी० । १३८. निचोलको निजलको निचौलं च निचौल्यपि। निचुलो वसत्धिकायां स्मृता पर्यस्तिकायुता ।। शबूदरलाकर ३, २२५ । १३६. पयोधरोन्नतिजनितजगद्वलयनोलनिचलेषु, यश० सं० पू०, पृ०७१
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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