SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'बप्पभट्टिचरित्' : ऐतिहासिक महत्त्व हरिअनन्त कड़के इतिहास विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय नाचार्य प्रभाचंद्र लिखित प्रभावकत्ररित जैनियों उपयुक्त और सुन्दर विषय अन प्राचार्यों का जीवन " का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। विक्रम की ही हो सकता है। इसे ही माध्यम बनाकर १ली शती से लेकर १३वी शती के पूर्वभाग तक घटनामों का वर्णन किया गया है । ऐतिहासिक के जैनधर्म के अनेक प्राचायों के जीवन का इतिहास घटनाओं को भी इस तरह घुमाया गया है जिससे इस ग्रंथ में संकलित किया गया है। इसका कि जैनधर्म की महिमा प्रकट हो। इसलिये हमारी प्राधार जैसा कि ग्रंथकार ने प्रस्तावना में लिखा माधुनिक दृष्टि में यदि इस पंथ का ऐतिहासिक है प्राचीन ग्रंथ और बहुत विद्वानों से सुनी हुई महत्व कम हो जाता है तो इसमें पाश्चर्य नहीं। परम्पराएं हैं। ' ई० स० १२७७ में इस पथ की परन्तु हमें यह ध्यान रखना है कि प्रथ का स्वरूप रचना पूरी हुई इमलिये कतिपय माधुनिक विद्वान् धार्मिक होते हुए भी प्रसंगवश इसमें अनेक ऐतिभारत के प्राचीन इतिहास को जानने के लिये इसका हासिक तथ्यों की भोर संकेत किया गया है जिसके प्रामाण्य स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं। २ सूक्ष्म अध्ययन से उस समय के इतिहास को स्पष्ट लेखक के विचार में इस ग्रंथ में भी ऐतिहासिक करना संभव है। पाश्चर्य तो यह है कि बप्पभट्टि सामग्री भरी पड़ी है। प्रथ कुछ बाद का होने से चरित में वरिणत घटनामों की पुष्टि स्कन्दपुराण उसकी प्रामाणिकता के बारे में हमें संदेह नहीं और प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज की ग्वालियर होना चाहिये । बृहत्कथा और मुद्राराक्षस का प्रशस्ति से हो जाती है जो इस ग्रंथ के महत्व को अध्ययन क्या हम मौर्य साम्राज्य के इतिहास के स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है। इस दृष्टि को ध्यान लिये नहीं करते ? ग्रंथ में वरिणत ऐतिहासिक में रखकर ही इस ग्रंथ में सूचित ऐतिहासिक घटघटनाओं का दूसरे ऐतिहासिक साधनों के साथ नामों की विवेचना प्रस्तुत निबंध में की गयी है। तुलनात्मक अध्ययन करने से यदि उसकी सस्यता 'बप्पट्टिचरित्' प्रभावकचरित का एक अंश है। प्रमाणित होती है तो उसे स्वीकार करने में हमें कन्नौज के राजा प्राम-नागावलोक के सभा पंडित कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्राचार्य बप्पभट्रि का जीवनचरित इसका विषय है। जैनधर्म के महत्व को स्थापित करना इस इस माम-नागाबलोक का समीकरण इतिहासमंथ का प्रधान उद्देश्य है । इसके लिये प्रत्यन्त कारों 3 ने कन्नौज के प्रतिहार सम्राट नागभट १. बहुच तमुनीशेभ्यः प्राग्ग्रन्थेभ्यश्च कानिचित् । उपत्येतिवृत्तानि वर्णयिष्ये कियन्त्यपि । १ । -प्रभावकारित ( सिंधी जनअपमाला ) प्रस्तावना, संवत् १६६७ ।। २. रा. रमेशचन्द्र मुजुमदार "हिस्ट्री प्रॉफ बंगाल" पृ० १११-१३, सिनहा डिक्लाइन मॉफ द किंगडम पॉफ मगध पृ. ३६५। ३. इंडियन इंटीक्वेरी, १६११, पृ० २३६-४०, डा. त्रिपाठी, 'हिस्ट्री प्राफ कन्नौज, पृ. २३५ डा. अलसेकर, राष्ट्रकूटाज एण्ड देयर टाइम्स' पृ०६३, एपि• इंडि०, भा॰ २, पृ० १२१-२६ ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy