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________________ प्राचीन भारतीय वस्त्र और वेश-भूषा ६१ अंशुक - यशस्तिलक में कई प्रकार के अंशुक का उल्लेख है यथा - अंशुक सामान्य या सफेद अंशुक, " कुसुमांशुक या ललाई लिये हुये रंग का शुक, २ कामिकांक अर्थात् नीला या मटमैले रंग का अंशुक अंशुक भारत में भी बनता था तथा चीन से भी प्राता था। चीन से माने वाला अंशुक चीनांशुक कहलाता था। भारतीय जन दोनों प्रकार के अंशुकों से बहुत प्राचीन काल से परिचित हो चुके थे । arrige के विषय में ऊपर चीन वस्त्र की व्याख्या करते हुए विशेष लिखा जा चुका है, प्रतएव यहाँ केवल अंशुक या भारतीय अंशुक के विषय में विचार करना है । ६७ ६८ कालिदास ने सितांशुक, ६४ प्ररुणांशुक, ६५ रक्तांशुक, ६ ६ नीलांशुक, तथा श्यामांशुक, का उल्लेख किया है । सम्भवतः अंशुक पहले सफेद बनता था, बाद में उसकी विभिन्न रंगों में रंगाई की जाती थी । कार्दमिकांशुक का अर्थ यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार ने कस्तूरी से रंगा हुआ वस्त्र किया है। कात्यायन के अनुसार भी शकल धौर ६६. ऋतुसंहार, ६,४,२६ ६७. विक्रमोर्वशी, पृ० ६० ६३ कर्दम से वस्त्र रंगने का रिवाज था, जिन्हें शाकलिक या कादमिक कहते थे । (४।२।२ वा० ) ७० 1 बाग ने अंशुक का कई बार उल्लेख किया है । वे इसे अत्यन्त पतला और स्वच्छ वस्त्र मानते थे । एक स्थान पर मृणाल के रेशों से अंशुक की सूक्ष्मता का दिग्दर्शन कराया है । ७२ बारण ने फूल पत्तियों और पक्षियों की प्राकृतियों से सुशोभित sire का भी उल्लेख किया है । ७३ प्राकृत ग्रन्थों में 'अंसुय' शब्द आता है । प्राचाराँग में अंशुक और चीनांशुक दोनों का पृथक पृथक निर्देश है । ७४ वृहत् कल्पसूत्र भाष्य में भी दोनों को अलग-अलग गिनाया है । ७५ प्राचीन भारतवर्ष में दुकूल के बाद सबसे अधिक व्यवहार अंशुक का हो देखा जाता है । सोमदेव के उल्लेखो से ज्ञात होता है कि दशवीं शताब्दी में श्रंशुक का पर्याप्त प्रचार था । कौशेय कौशेय का उल्लेख सोमदेव ने विभिन्न देशों के राजाओंों द्वारा भेजे गये उपहारों में किया है । कौशल नरेश ने सम्राट यशोधर को कौशेय वस्त्र उपहार में भेजे। ६१. सितपताकांक, यश० उत्त०, पृ० १३ ६२. सुम्मांशुकपिहितगौरीपयोधर, वही, पृ० १४ ६३. कार्दमकांशुकाधिकृतकायपरिकरः, वही, पृ० २२० ६४. सितांशुका मंगलमात्र भूपरणा, विक्रमोर्वशी, ३, १२ ६५. अरुण रागनिषेधिभिरंशुकैः, रघुवंश, ६,४३ ६८. मेघदूत, पू० ४१ ६६. कार्दमिक कर्दमेण रक्तम्, यश० उत्त०, पृ० २२०, सं० टी० ७०. उडत अग्रवाल- पाणिनीकालीन भारतवर्ष, पृ० २२५ ७१. सूक्ष्म विमलेन प्रज्ञावितानेने वांशुकै नाच्छादितशरीरा, हर्षचरित, ७२. विषतन्तुमयेनांशुकेन, वही, पृ० १० । ७३. बहुविधकुसुमशकुनिशतशोभितादतिस्वच्छादंशुकात्. वही, पृ० ११४ ७४. सुयाणि वा श्रीमुपाणि वा, प्राचारांग, २, वस्त्र० १४, ६ ७५. अंग ची च विगलंदी, बृहत् कल्पसूत्र ०४, ३६६१
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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