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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ
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इस विवरण से इतना तो निश्चित रूप से ज्ञात हो जाता है कि दुकूल जोड़े के रूप में प्राता था । इसका एक चादर पहनने और दूसरा प्रोढ़ने के काम में लिया जाता था। दुकूल के पान को काट कर अन्य वस्त्र भी बनाये जाते थे। बाण ने दुकूल के बने उत्तरीय, साडियां, पलंगपोश, तकियों के गिलाफ प्रादि का वर्णन किया है।"
दुकूल के विषय में एक बात और भी विचा रणीय है । बाद के साहित्यकारों तथा कोपकारों ने क्षोम और दुकूल को पर्याय माना है। स्वयं यशस्तिलक के टीकाकार ने दुकूल का अर्थ क्षोमवस्त्र किया है । ५२ अमरकोषकार ने भी दुकूल को पर्याय माना है। वास्तव में दुकूल और क्षीम एक नहीं ये । कौटिल्य ने इन्हें अलग-अलग माना है । ५४ बाण ने क्षोम की उपमा दूधिया रंग के क्षीर सागर से तथा प्रांशुक की सुकुमारता की उपमा दृफूल की कोमलता से दी है । ५५
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इस तरह यद्यपि क्षोम और दुकूल एक नहीं थे फिर भी इनमें अन्तर भी अधिक नहीं था। दुकूल । और क्षोम दोनों एक ही प्रकार की सामग्री से बनते थे। इनमें अन्तर केवल यह था कि कुछ मोटा कपड़ा बनता वह क्षोम कहलाता तथा जो महीन बनता वह दुकूल कहलाता। दुकूल की व्याख्या करने के
बाद कौटिल्य ने लिखा है कि इसी से काछी धौर पोटदेश के सोम की भी व्याख्या हो गयी। गणपति शास्त्री ने इसका खुलासा करते हुए लिखा है कि मोटा दुकूल ही शोम कहलाता था। हेमक्षोम । ५७ चन्द्राचार्य ने इसे और भी अधिक स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि शुभा प्रतसी क्षुमा (अलसी) को कहते हैं, उससे बना वस्त्र क्षोम कहलाता है। इसी तरह शुमा से (अलसी से ) रे निकाल कर जो वस्त्र बनता है वह दुकूल कहलाता है।" साधुमुन्दर गरिए ने भी लिखा है कि दुकूल अलसी से बने कपड़े को कहते हैं । पूर्वी भागों में (घासाम बंगाल) - अलसी नामक घास बहुतायत से होती थी। बंगाल में इसे कांसुर कहा जाता था।" दुकूल मौर सोम क्षोम इसी घास के रेशों से बनने वाले वस्त्र रहे होंगे ।
भारतवर्ष के
में
यह क्षुगा या
सोमदेव ने दुकूल का कई बार उल्लेख किया है, किन्तु क्षोम का एक बार भी नहीं किया। संभव है सोमदेव के पहले से ही दुकूल धोर क्षोम पर्यायवाची माने जाने लगे हों और इसी कारण सोमदेव ने केवल दुकूल का प्रयोग किया हो । सोमदेव के उल्लेख से इतना अवश्य मानना चाहिये कि दावी शताब्दी तक दुकूल का खूब प्रचार था तथा यह वस्त्र सम्भ्रान्त और बेशकीमती माना जाता था ।
५१. प्रग्रवाल - हरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन २७६ ५२. दुकूलं क्षोमवस्त्रम्, यश० सं० पू० पृ० ५६२ सं० टीका ५२. क्षौमं दुकूलं स्यात् । भ्रमरकोष २,६,११३ ॥
५४. अर्थशास्त्र २, ११
५५. क्षीरोदायमानं क्षोमैः, हर्षचरित, पृ० ६० ।
चीनांशुकसुकुमारे- दुकूलकोमले, वही पृ० ३६
५६. ते कामिकं पौण्डकं च क्षौमं व्याख्यातम् पशास्त्र २, ११
५७. स्कूलमेव हि क्षौममिति व्यपदिश्यते, वही सं० टी०
५८. धुमा तमी तस्या विकारः क्षोमम्, दुह्यते क्षुमाया श्रकृष्यते दुगूलम् अभियानचिन्तामण,
३।३३३
५६. दुकूलन्तसीपटे, शब्दरत्नाकर ३२११
६०. डिनरी ग्राफ इकोनोमिक प्रोडक्टस, भा० १ ० ४६८४६६ उद्धत, डॉ० वासुदेवशरण
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अग्रवाल पंचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७६-७७