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प्राचीन भारतीय वस्त्र और वेश-भूषा मध्य ऐशिया के प्राचीन पथ पर बने हुए एक होते हैं, जिनमें बुनावट में ही फूलपत्तियों की भांत चीनी रक्षागृह से एक रेशमी थान मिला, जिस पर डाल दी जाती थी । बंगाल इन वस्त्रों के लिए सदा ई० पू० पहली शताब्दी की ब्राह्मी में एक पुरजा से प्रसिद्ध रहा है । वाणभट्ट ने लिखा है कि प्राग्ज्यो. लगा हुमा था। यह इस बात का द्योतक है कि तिषेश्वर (मासाम) के राजा ने श्रीहर्ष को उपहार भारतीय व्यापारी चीनी-रेशमी कपड़े को खोज में में जो बहुमूल्य वस्तुयें भेजी उनमें चित्रपट के तकिये चीन को सीमा तक इतने प्राचीन काल में पहुँच गये भी थे, जिनमें समूर या पक्षियों के बाल या रोए थे।15
भरे थे।२३ चीन देश से आने वाले वस्त्रों में सबसे अधिक उल्लेख चीनांशुक के मिलते हैं । १६ यह एक रेशमी पटोल-पटोल का अर्थ यशस्तिलक के संस्कृत वस्त्र था । वृहत् कल्पसूत्र भाष्य में इसकी व्याख्या टीकाकार ने पट्ट कूल वस्त्र किया है । २४ गुजरात में कोशकार नामक कीडे से अथवा चीन जनपद के अभी भी पटोला नामक साड़ी बनती है तथा इसका बहुत पतले रेशम से बने वस्त्र से की गई है ।२० व्यवहार होता है। इस साड़ी को लड़की का मामा
विवाह के अवसर पर उसे भेंट करता है । यह साड़ी चीनांशुक के अतिरिक्त चीन और वाह लीक से
बांध रंगने की विधि से रंगे गये ताने-बाने से भेड़ों के ऊन, पश्म (गंकव), रेशम (कीटज) और
वनती है। इसकी बिनावट में सकरपारे पड़ते हैं, पट्ट (पट्टज) के बने वस्त्र माने थे। ये ठीक नाप के,
जिनके बीच में तिपतिये फल होते है। कभी कभी खुशनुमा गंगवाले तथा स्पर्श करने में मुलायम होते
अलंकारों में हाथियों को पंक्ति, पेड़-पोचे, मनुष्यथे । इन देशों से नमदे (क्ट्रीकृत) कमल के रंग के
प्राकृतियां और चिड़िया भी होती हैं । २५ हजारों कपड़े, मुलायम रेशमी कपड़े तथा मेमनों की खालें भी पाती थी।२१
रल्लिका-रल्लिका का अर्थ यगस्तिलक के चित्रपटो-यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार संस्कृत टीकाकार ने रक्त कबल किया है। ने चित्रपटो का अर्थ रंग-बिरंगे सूक्ष्म वस्त्र किया रत्नक एक प्रकार का मृग होता था जिसके ऊन है। २२ चित्रपटी या चित्रपट वे जामदानी वस्त्र ज्ञात से यह कपड़ा बनता था। सोमदेव ने जंगल का
१८. सर पारल स्टाहन-एशिया मेजर, हर्थ एनिवर्सरी बानुम १९२३, पृ० ३६७-३७२ १६. प्राचारोग, २,१४,६। भगवती,३३,९। अनुयोगद्वार ३६, निशीथ ७,११ । प्रश्नव्याकरण ४,४ २०. कोशिकाराख्या.कृमिः तस्माज्जातम , अथवा चीनानाम् जनपदः तत्र यः श्लक्षणतरपट.तस्माज्जातम्
वृहत्वल्प० ४,३६६२ । २१. प्रमाणरागस्पर्शादयं बाल्हीचीनसमुद्भवम् । औरणं च रांकवं चैव कीट पट्ट तथा ॥ कुटीकृतं
तथैवात्र कमलाभं सहस्रशः । इलक्षणं वस्त्रमकसपामाविकं मृदुचाजिनम् । महाभा० सभा
पर्व ५११२७ २२. चित्रा नानाप्रकारा याः पट्यः सूक्ष्मवस्त्राणि, यश सं० पू० पृ० ३६८, सं० टी० २३. अग्रवाल-हारतः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १६८ २४. पटोलानि च पट्टयूलवस्त्राणि, यश० सं० पू०. पृ० ३६८ २५. वाट-इडियन आर्ट एट दो देहली एक्जिविशन, पृ० २५६-२५६ । उद्धत, मोतीचन्द्र भारतीय ____ वेशभूपा, पृ० ६५ २६. रल्लिकारच रक्तादिकंबल विशेषाः, यश ० सं० पू० पृष्ठ ३६८, स० टी ।