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________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ ५८ धुले हुए नेवसूत्र की पट्टी बांधे हुए एक अधोवस्त्र पहने थे। बाण ने अन्य प्रसंग पर अन्य वस्त्रों के साथ नेत्र के लिए भी अनेक विशेषरण दिये हैंसांप की केंचुली की तरह महीन, कोमल केले के गामे की तरह मुलायम, फूंक से उड़ जाने योग्य हलके तथा केवल स्पर्श से ज्ञात होने योग्य बाण ने लिखा है कि इन वस्त्रों के सम्मिलित प्राच्छादन से हजार-हजार इन्द्रधनुषो जैसी कान्ति निकल । रही थी। इस उल्लेख से रंगीन नेत्र का पता लगता है। वाण ने छापेदार नेत्र के भी उल्लेख किये हैं। राज्यधी के विवाह के अवसर पर खम्भों पर छापेदार मंत्र लपेटा गया था। एक अन्य स्थान पर छापेदार नेत्र के बने सूचनों का उल्लेख है। सम्भवतया नेत्र की विनावट में ही फूलपत्तियों की भांत डाल दी जाती हो। नाकर में चौदह प्रकार के नेत्रों का उल्लेख है । १० चौदहवीं शती तक बंगाल में नेत्र अथवा नेत एक मजदूत रेशमी कपड़े को कहते थे। इसकी पाचूड़ी पहनी और बिछाई जाती थी।" पदमावत के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि सोलहवीं शती तक नेत्र का प्रचार था, जायसी ने तीन बार नेत्र अथवा नेत का उल्लेख किया है । रतनसेन के शयनागार में अगर चन्दन पोतकर नेत के परदे लगाये गये थे । १२ पदमावती जब चलती थी ती नेल के पांवड़े बिछाये जाते थे। एक अन्य प्रसंग में भी मार्ग में नेत बिसाने का उल्लेख है । १४ । मण्डित है भोजपुरी लोकगीतों में नेत का उल्लेख प्रायः भाता है। १४ बंगला में भी नेत के उल्लेख मिलने (नेतर यांचते चर्म मति करिया घर पर वाशिनि पोले, अर्थात नेत के प्रांत में चमड़े से डंकी हुई स्त्री रूपी व्याघ्री पर घर में पोसी जा रही है, धमंमंगल में गोरखनाथ का गीम) १६ चीन - चीन का प्रर्थव तदेव ने चीन देश में होने वाले वस्त्र का किया है। १७ सोमदेव के बहुत समय पहले से भारतीय जन चीन देश में भाने वाले वस्त्रों से परिचित हो चुके थे। डा० मोतीचन्द ने "भारतीय वेशभूषा" में चीन देश में मानव मे व के विषय में पर्याप्त जानकारी दी है। उसके आधार पर उन यत्रों का परिचय यहां दिया गया है। ५. विमलपयो धोनेन नेत्रसूत्रनिवेशशीभिनाधरवामसा, वही, पृ० ७० ६. निर्मोकनिमैः, अक्टोररम्भागर्भकोमलैः, निश्वासहायें, स्पर्शानुमेये: वामोभिः वही, पृ०१४३ ७. स्फुरद्विभरिन्द्रायुधमह रिव संचादितम् वही, पृष्ठ १४३ ८. चित्रपटवेष्ट्यमानंश्च स्तम्भः, वही पृष्ठ १४३ , १. उत्रिनेत्रकुमारस्वस्थानस्थगित जंपाकाण्डे वही, पृष्ठ २०६ १०. हरिणा, वेगना, नखी, सर्वाग, गरु, सुचीन, राजन, पंचरंग, नील, हरित, पीत, लोहित, चित्रवर्ण एवम्बिध चतुर्दश जाति नेत देयु ॥ रत्नाकर, पृष्ठ २२ ११. तमोनाशचन्द्रदास -ग्रासपैक्टस श्राफ बंगाली सोसायटी फाम बंगाली लिटरेचर, पृष्ठ १८०-१८१ १२. वर जूडि तहां सोवनारा अगर पति सुख नेत मोहारा । प्रवाल- पद्मावत ३३६४ १३. पालक पांव कि माहिपाटा नेता जोन वाटा । वही ४८५७ १४. नेत विद्यावा वाट, वही, ६४११८ १५. राजा दशरथ द्वारे चित्र उरेहन, ऊपर नेत फहरामु है। जनपद, वर्ष १ अ ३, अप्रैल १९३६, पृ० ५२ । १६. उद्भुत, अग्रवाल, पद्मावत, पृष्ठ ३३६ १७. चीनानां चीनदेशोत्पन्नवस्त्राणाम् यश० मं० पू० ० ३३६, मं० टी०
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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