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________________ साहित्य और पुरातत्त्व प्रेमी, बाबूजी त्रिजयसिंह नाहर, एम. एल. ए., कलकत्ता साहित्य और पुरातत्व के प्रेमी विद्वान् बात छोटेलालजी जैन के निधन से केवल जैन समाज ने ही एक उज्ज्वल रत्न को नहीं खोया परन्तु सारे पुरातत्व जगत को हानि पहुँचो । सरल स्वभाव, सदा ममुख farar छोटेलालजी से जो भी मिलता उनके चरण से गद्गद् हो जाता। मुझे याद आता है जब में छात्र था बाबू छोटेल लजी हमारे परम पूज्य पिताजी स्व० पूरणचन्दजी नाहर के पास आते और जैन शोध खोज की वातें होती । मुझे हो उनको साथ लेकर पिताजी के पुस्तकालय "श्री गुलाब कुमारी लायब्रेरी" में उनको किताब दिखाने ले जाना होता । श्रत्यन्त श्रद्धा से, मनन से पुस्तकें देखने और उनसे अपने खाने में नंट करते। हमे समझाते कि जैन साहित्य में समुद्र ऐमा गंभार है. खोज के निकालने से हर विषय का पांडित्यपूर्ण समाधान प्राप्त होगा । सन् १९३३ को बात है, में कलकत्ता कारपोरेदान के चुनाव में खड़ा हुया । बाबू छोटेलाल जी एक दिन प्राये | मुझ से कहा कि तुम्हें करा मदद चाहिए। उन्होंने कई गाड़ियाँ भेज दो और उनके परिचित कई वोटरों के पास मुझे ले गये। वे स्वयं श्राये । मैंने उनसे कोई निवेदन नहीं किया था । क्योंकि वे हमारे चुनाव इलाके से बाहर रहते थे । कितना प्रेम था एक समाज के नवयुवक के प्रति । कई साल हुए जब में बंगलोर जा रहा था उनसे बात हुई। उन्होंने मुझे मूलवित्री दर्शन करने को कहा और वहां जो अलग-अलग जवाहरात की प्राचीन जैन प्रतिमायें है उसका वर्णन किया। खुद कष्ट कर कई मित्रो को पत्र लिखा जिससे मुझे सहूलियत रहे। शरीर स्वस्थ होते हुए भी उत्साह का प्रभाव नहीं । उन्हें देखा है जब-जब कोई विद्वान् उनके पाप प्राये और कोई पुस्तक की जरूरत पड़ी तो मुझे टेलीफोन करते और स्वयं ही उन विद्वान् को लिए पहुँच जाते और पुस्तकें दिलाते । कोई श्रालम् उनके पास नहीं था । पुरातत्व विषय की कई पुस्तकें उनकी लिखी हुई हैं । ऐसियाटिक सोस. ईटी के ही सदस्य थे। प्राचीन जैन लेखों से उनका प्र ेम था और उन्हें प्रकाशित करते रहने । देश विदेशों के अनेक विद्वानो से उनका परिचय था । पत्र प्राते रहते और मित्रों को वे सब पत्र दिखाते और उन पत्रों के विषय में मालोचना भी करते ताकि उनकी जिज्ञासा को पूर्ण करके उत्तर देने में सहूलियत हो । स्व० बानू छोटेलालजी जैन 'मृति ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । श्राशा है इससे जैन विद्वानों को एक रास्ता मिलेगा, प्रेरणा प्राप्त होगी । में उस दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि निवेदन करता हूँ ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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