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बाबूजी : एक संस्मरण
की उन्नति कैसे हो, उनकी तात्कालिक समस्यायें धर्म-प्रभावना की ही भावना नहीं है, उनका अपना क्या हैं और उनके समाधान के लिये क्या करना ज्ञान और मनन भी क्रियाशील है। नाहिए अमुक अमुक विद्वान या शोधछात्र किस विचारों में वे बड़े उदार थे। समाज में विषय पर काम कर रहा है और उसकी प्रावश्य- घामिक प्रास्था बढ़े, तत्वज्ञान का प्रचार और जैन कतायें क्या हैं. पूर्वी तथा उत्तरी भारत के ही नहीं, कला का परिचय व्यापक हो इस प्रयास के साथदक्षिण भारत के तीर्थ क्षेत्रों पर वहाँ क्या महत्त्वपूर्ण साथ वह युग के अनुकूल समाजिक सुधारों के भी है और वहां की जैन समाज की स्थिति क्या है इस सब की वे खोज खबर रखते थे। समाज के सर्व- महयोग देते रहना, उनका सहयोग प्राप्त करना साधारण व्यक्ति भी उन्हें इतना प्रात्मीय मानते थे और धीरे-धोरे नयी जागृति, नये चिन्तन को मोर कि निजी अथवा स्थानीय समस्या निस्संकोच उनके उन्हें प्रग्रसर करना तथा जैन धर्म की मात्मा को सामने रखते थे और आशा करते थे कि वे अपने रुढि-मुक्त करना ये सब बड़ी सहनशीलना भोर निजी साधनों अथवा अपने संपकों के प्रधार पर धोरज का काम है। उनके मन की सहज गति इसी अवश्य कोई हल निकालेंगे कोई सहायता देंगे या प्रकार की थी। यही कारण है कि उनके माथ मेरे प्राप्त कर देंगे । जब-जब बे मिलते सब प्रकार की विचारों और भावनामों का सामंजस्य बैठता था समस्याओं को बड़ी सहानुभूति पूर्वक मेरे सामने और हम लोग मिल कर सामाजिक क्षेत्र में इतना रखते । इस प्रकार दूर की समस्यायें भी मेरे लिए कुछ कर सके । निकट की बन जाती और यथा-साध्य उनके निवारण बाब छोटेलाल जी प्रारम्भ से ही भारतीय का प्रयत्न होता रहता।
ज्ञानपीठ के दुग्टी थे और संचालक समिति के
सदस्य । ज्ञानपीठ के सांस्कृतिक-धार्मिक प्रकाशनों जैन विद्वानों में तो उनके निकट-तम संपर्क ये के कार्यक्रम में उन्होंने मदा व्यक्तिगत रुचि ली और ही, वे उन जैनैतर विद्वानों से प्रात्मीयता बढ़ाते भारतीय साहित्य की उन्नति की दिशा में जो योजजो जन साहित्य, जैन दर्शन या जैन कला के क्षेत्र में नायें ज्ञानपीठ ने बनाई उन सबको हार्दिक समर्थन काम करते थे। इन विद्वानों पर बाद छोटेलालजी दिया। वे एक ऐमा प्रभाव छोड गये जिसको प्रति का प्रेरणा प्रभाव इसलिए विशेष रूप से पड़ता था मब असंभव लग रही है। उनके मधुर व्यक्तिल कि वे जानते थे कि उनकी इस लगन के पीछे केवल और उनके अकपट स्नेह की स्मृति अमर रहेगी।