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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] आगे यानादि विषै तीनि गाथानि करि कहै है -- चरम-धरासण-हारा आणदसम्माण आरणप्पहूदि । अंतिम - वेज्जंतं, सम्माणमसंखसंखगुणहारा ॥ ६३८ ॥ चरमधरासनहारादानतसमीचामारणप्रभृति । अंतिमग्रैवेयकांतं, समीचामसंख्य संख्यगुणहाराः ||६३८॥ 1 टीका - तीहि सप्तम पृथ्वी संबंधी सासादन के भागहार तै प्रानत-प्राणत संबंधी अविरत का भागहार असख्यात गुणा है । बहुरि यातै आरण - अच्युत तै लगाइ नवमां ग्रैवेयक पर्यंत दश स्थानकनि विषे असंयत का भागहार अनुक्रम ते सख्यात गुणसंख्यात गुणा जानना । इहा सख्यात की सहनानी पाच का अंक है ।। . तत्तो ताणुत्तारणं, वामागमणुद्दिसारण विजयादी । सम्माणं संखगुणो, प्राणदमिस्से असंखगुणो ॥ ६३६ ॥ ततस्तेषामुक्तानां वासानामनुदिशानां विजयादि । समोचां संख्यगुण, आनतमिश्रे असंख्यगुणः ॥६३९॥ टीका - तीहि अतिम ग्रैवेयक संबंधी असंयत का भागहार ते प्रानत प्राणत युगल तै लगाइ, नवमा ग्रैवेयक पर्यंत ग्यारह स्थानकनि विषै वामे जे मिथ्यादृष्टी जीव, 'तिनिका सख्यात गुरणा, सख्यात गुणा भागहार अनुक्रम ते जानना । इहा सख्यात की • सहनानी छह का अक है । बहुरि तीहि अंतिम ग्रैवेयक सम्बन्धी मिथ्यादृष्टी का भागहार ते नवानुदिश विमान वा विजयादिक च्यारि विमान, इनि दोऊ स्थानकनि विषे असंयत का भागहार संख्यात गुरणा, संख्यात गुणा क्रमते जानना । इहा संख्यात की सहनानी सात का अक है । बहुरि विजयादिक सम्बन्धी असयत का भागहार · आनतप्राणत सम्बन्धी मिश्र का भागहार असख्यात गुणा है । [ ७१३ तत्तो संखेज्जगुरणो, सासा सम्मारण होदि संखगुणो । उत्ताट्ठाणे कमसो, पणछस्सत्तट्ठचदुरसंदिट्ठी ॥६४० ॥ १. षट्खडागम घवला पुस्तक- ३, पृष्ठ स २८५ । २. षट्खण्डागम, धवला : पुस्तक- ३, पृष्ठ स. २८५ ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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