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ततः संख्येयगुणः, सासनसमीचां भवति संख्यगुणः । उक्तस्थाने क्रमशः पंचषट्सप्ताष्टचतुः संदृष्टिः ||६४०||
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६४१
तै टीका - तीहि आनत प्रारणत सम्बन्धी मिश्र का भागहार ते आरण-अच्युत लगाइ नवमा ग्रैवेयक पर्यंत दश स्थानकनि विषै मिश्र गुणस्थान संबंधी भागहार अनुक्रम तै संख्यात गुणा, संख्यात गुणा जानना । इहां संख्यात की सहनानी श्राठ का अंक है । बहुरि अंतिम ग्रैवेयक के मिश्र का भागहार तैं आनत प्रारणत तै लगाइ नवमां ग्रैवेयक पर्यंत ग्यारह स्थानकनि विषै सासादन का भागहार अनुक्रम तै संख्यात गुणा संख्यात गुणा जानना । इहां संख्यात को सहनानी च्यारि |४| का अक है । ए कहे पच स्थानक, तिनिविषै संख्यात की सहनानी क्रमते पांच, छह, सात, आठ, च्यारि का अंक जानना; सो कहते ही आए है ।
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सग-सग - अवहाह, पल्ले भजिदे हवंति सगरासी । सग-सग - गुरपडिव सग-सग-रासीसु प्रवणिदे वामा ॥ ६४ ॥
स्वकस्वकावहारैः, पल्ये भक्ते भवंति स्वर्कराशयः । स्वकस्वकगुणप्रतिपन्नेषु, स्वकस्वकराशिषु प्रपनीतेषु वामाः ||६४१॥
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टीका पूर्व कह्या जो अपना-अपना भागहार, तिनिका भाग पल्य कौ दोए, जो जो प्रमाण आवै, तितने-तितने जीव तहां जानने । बहुरि अपना-अपना सासादन, मिश्र, असयत अर देशसंयत गुरणस्थाननि विषै जो-जो प्रमाण भया, तिनिका जोड दीए, जो-जो प्रमाण होइ, तितना - तितना प्रमाण अपना-अपना राशि का प्रमाण मे घटाए, जो-जो अवशेष प्रमाण रहे, तितने-तितने जीव, तहां मिथ्यादृष्टी जानने । तहा सामान्यपनै मिथ्यादृष्टी किंचित् ऊन ससारी - राशि प्रमाण है । सामान्यपने देवगति विषै ऊन किचित् देवराशि प्रमाण मिथ्यादृष्टी जानने । सौधर्मादिक विषे जो-जो जीवनि का प्रमाण कह्या है, तहां द्वितीयादि गुणस्थान सबधी प्रमाण घटावने के निमित्त किचित् ऊनता कीएं, जो-जो प्रमाण रहै, तितने-तितने मिथ्यादृष्टी है । सो सौधर्मादिक विपें जीवनि का प्रमाण कितना - कितना है ? सो गति मार्गणा विषे का ही है । इहां भी किछु कहिए है
सौधर्म - ईशानवाले घनांगुल का तृतीय वर्गमूल करि जगच्छू णी कौं गुणै, जो प्रमाण होइ, तितने है । सनत्कुमार युगल आदिक पंच युगलनि विषै क्रम तै जग