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सम्याज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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प्रागै सर्वसयमी जीवनि की संख्या कहै हैंसत्तादी अळंता छण्णवमझा य संजदा सव्वे । अंजलि-मौलिय-हत्थो तियरणसुद्धे णमंसामि ॥६३३॥
सप्तादय-अष्टान्ताः षण्णवमध्यांश्च संयताः सर्वे ।
अंजलिमौलिकहस्तस्त्रिकरणशुद्धया नमस्यामि ॥६३३॥ टीका - सात का अंक आदि पर पाठ का. अंक अंत. अर मध्य विष छह नव के अंक ८६६६६६६७ असे लिखै भई तीन घाटि नव कोडि सख्या तीहि प्रमाण जे संयमी छठे गुणस्थान तै लगाइ चौदहवां गुणस्थान पर्यंत है। तिनिकौ अजुली करि मस्तक हस्त लगावतौ संतौ मन, वचन, कायरूप त्रिकरण शुद्धता करि नमस्कार मैं करौ हौ । तहा प्रमत्तवाले ५६३९८२०६, अप्रमत्तवाले २६६६६१०३, च्यार्यो गुणस्थानवर्ती उपशम श्रेणीवाले ११६६, च्यारयों गुणस्थानवर्ती क्षपक श्रेणीवाले २३९२, सयोगी जिन ८९८५०२, मिले हुवे जे (८६६६६३९६) भए ते नव कोडि तीन घाटि विर्षे घटाएं अवशेष पाच से अठ्यारणवै रहे, ते अयोगी जिन जानने ।
. आगै च्यारि गतिनि का मिथ्यादृष्टी, सासादन, मिश्र, अविरत गुणस्थानवर्ती तिनकी संख्या का साधक पल्यः के भागहार का विशेष कहै हैं - जाका भाग दीजिए ताकौं। भागहार कहिए सो आगे जो जो भागहार का प्रमाण कहै है; तिस तिसका पल्याको भाग दीजिए, जो जो प्रमाण आवै, तितना तितना तहां जीवनि का प्रमाण जानना । जहा भागहार का प्रमाण थोरा होइ, तहां जीवनि का प्रमाण बहुत जानना । जहा भागहार का प्रमाण बहुत होइ, तहां जीवनि का प्रमाण थोरा जानना । असे एक हजार को पांच का भाग दीए दोय से पावै, दोय सै का भाग दीए पाच ही पावै सै जानना।
सो अब भागहार कहैं है
ओघा-संजद-मिस्सय-सासण-सम्माण भागहारा जे । ___रूऊणावलियासंखेज्जेणिह भजिय तत्थ णिक्खिते ॥६३४॥
१ पटखण्डागम-धवला पुस्तक ३, पृष्ठ ९८, निर्जर्भाजदा समगुरिणदापमत्तरासी प्रमता । २. षटखण्डागम - धवला पुस्तक ३, पृष्ठ १६०-१८४॥