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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा'६३०-६३२
1905)
होति खवा इगिसमये, बोहियबुद्धा य पुरिसवेदा य । उक्कस्सेणठुत्तरसयप्पमा सग्गदो य चुदा ॥६३०॥ पत्तेयबुद्ध-तित्थयर-त्थि-णउंसय-मणोहिणाबजुदा । दस-छक्क-वीस-दस-वीसठ्ठावीसं जहाकमसो ॥६३१॥ जेट्ठावरबहुमझिम-योगाहणगा दु चारि अद्वैव । जुगवं हवंति खवगा, उवसमगा अद्धमेदेसि ॥६३२॥ विसेसयं ।
भवन्ति क्षपका एकसमये, बोधितबुद्धाश्च पुरुषवेदाश्च । उत्कृष्टेनाष्टोत्तरशतप्रमाः, स्वर्गतश्च च्युताः ॥६३०॥ प्रत्येकबुद्धतीर्थंकरस्त्रीनपुसकमनोऽवधिज्ञानयुताः । दशषटकविंशतिदविंशत्यष्टाविंशो यथाक्रमशः॥६३१॥ ज्येष्ठावरबहुमध्यामावगाहा द्वौं चत्वारः अष्टव । युगपद् भवन्ति क्षपका, उपशमका अर्द्धमेतेषाम् ॥६३२॥ विशेषकम् ।
टीका - युगपत् एक समय विषै क्षपक श्रेणीवाले जीव असै उत्कृष्टता करि पाइये है । वोधित-बुद्ध तौं एक सौ आठ, पुरुषवेदी एक सौ आठ, स्वर्ग ते चय करि मनुप्य होइ क्षपक भए असे एक सौ आठ, प्रत्येक बुद्धि ऋद्धि के धारक दश, तीर्थकर छह, स्त्री वेदी वीस, नपुंसक वेदी दश, मनःपर्ययज्ञानी बीस, अवधिज्ञानी अठाईस मुक्त होने योग्य शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना के धारक दोय, जघन्य अवगाहना के धारक च्यारि, सर्व अवगाहना के मध्यवर्ती भैसी अवगाहना के धारक आठ अस ए सर्व मिले हुवे च्यारि सै बत्तीस भए । बहुरि उपशमक इनि ते आधे सर्व पाइए । तातै सर्व मिले हृवे दोय से सोलह भए पूर्व गुणस्थाननि विर्षे एकठे भए जीवनि की सख्या कही थी, इहा असा कह्या है - जो श्रेणी विष युगपत् उत्कृष्ट होंइ तौ पूर्वोक्त जीव पूर्वोक्त प्रमाण होंइ, अधिक न होंइ।
१ गाथा सं. ६३०, ६३१ के लिए पट्खण्डागम - धवला पुस्तक ५ के पृष्ठ क्रम से ३०४, ३११,३२१
और ३०७, ३२०, २३ देखें।