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________________ १०] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ६३ देवणं अवहारा, होंति श्रसंखेण ताणि श्रवहरिय | तत्थेव य पक्खित्ते, सोहम्मीसारण अवहारा' || ६३५ || जुम्मं । प्रोघा असंयतमिश्रकसासनसमीचां भागहारा ये । रूपोनावलिका संख्यातेनेह भक्त्वा तत्र निक्षिप्ते ||६३४ || देवानामवहारा, भवंति श्रसंख्येन तानवहृत्य । तत्रैव च प्रक्षिप्ते, सौधर्मेशानावहाराः ॥६३५ ॥ टीका - गुणस्थान संख्या विषै पूर्वे जो असंयत, मिश्र, सासादन की संख्या विषै जो पल्य कौ भागहार कह्या है, तिनको एक घाटि प्रावली का असख्यातवां भाग का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितना तितना तिन भागहारनि में मिलाए देवगति विषै भागहार हो है । तहां पूर्वे असंयत गुरगस्थान विषै भागहार का प्रमारग एक वार असंख्यात का था, ताको एक घाटि आवली का असंख्यातवा भाग का भाग दीजिये, जो प्रमाण आवै, तितने तिस भागहार में मिलाइए, जो प्रमाण होइ, तितना देवगति सम्बन्धी असंयत गुणस्थान विषै भागहार जानना । इस भागहार का भाग पल्य क दीए, जो प्रमाण होइ, तितने देवगति विषं असंयत गुणस्थानवर्ती जीव है । जैसे ही आगे भी पल्य के भागहार जानने । बहुरि मिश्र विषै दोय वार असंख्यात रूप अर सासादन विषे दोय बार असंख्यात अर एक वार सख्यात रूप पूर्वे जो भागहार का प्रमाण का था, तिसका एक घाटि आवली का असंख्यातवां भाग का भाग दीएं, जो जो प्रमाण आवै, तितना तितना तहां मिलाए, देवगति संबंधी मिश्र विषै वा सासादन विभागहार का प्रमाण हो है । बहुरि देवगति संबंधी असंयत वा मिश्र वा सासा - दन विपै जो जो भागहार का प्रमाण कह्या, तिस तिसको एक घाटि आवली का असंख्यातवां भाग का भाग दीएं, जो जो प्रमाण आवै, तितना तितना तिस तिस भागहार मे मिलाये, जो जो प्रमारण होइ, सो सो सौधर्म - ईशान संबंधी अविरत वा मिश्र वा सासादन विषै भागहार जानना । जो देवगति संबंधी अविरत विषै भागहार कह्या था, ताकौ एक घाटि आवली का असंख्यातवां भाग का भाग दीएं, जो प्रमाण होइ, तितना तिस भागहार विषै मिलाए, सौधर्म - ईशान स्वर्ग संबंधी असंयत विषे भागहार हो है । इस ही प्रकार मिश्र विषे वा सासादन विषे भागहार जानना । १ पट्खण्डागम - घवला पुस्तक- ३, पृष्ठ १६०-१८४ |
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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