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सम्पाजानचन्द्रिका भाताटीका |
९६१ इहा एक एक वस्तु का उदाहरण कह्या है । सो पृथ्वी, काष्ठ, पाषाण इत्यादि बादरवादर है । जल, तैल, दुग्ध इत्यादि बादर है । छाया, आतप, चादनी इत्यादि वादरसूक्ष्म है । शब्द गन्धादिक सूक्ष्मवादर है । इन्द्रियगम्य नाही; देशावधि परमावधिगम्य होंहि ते स्कंध सूक्ष्म हैं । परमाणू सूक्ष्मसूक्ष्म है, जैसे जानने । । ।
खधं सयलसमत्थं, तस्स य अद्ध भरणंति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो, अविभागी चेव परमाणू ॥६०४॥
स्कंधं सकलसमर्थ, तस्य चाध भणंति देशमिति । अर्धाद्धं च प्रदेशमविभागिनं चैव परमाणुम् ॥६०४॥
टीका - जो सर्व अंश करि संपूर्ण होइ, ताको स्कंध कहिए । ताका आधा कौं देश कहिये । तिस प्राधा के आधा को प्रदेश कहिए । जाका भाग न होइ, ताकौं परमाणू कहिये।
भावार्थ- विवक्षित स्कंध विर्ष संपूर्ण ते एक परमाण अधिक अर्घ पर्यंत तौ स्कंध संज्ञा है । अर्घ ते लगाय एक परमाणू अधिक चौथाई पर्यंत देश संज्ञा है । चौथाई ते लगाय दोय परमाणू का स्कंध पर्यंत प्रदेश संज्ञा है । अविभागी कौ परमाणू संज्ञा है। इति स्थानस्वरूपाधिकार ।
गदिठाणोग्गहकिरियासाधणभूदं खु होदि धम्म-तियं । वत्तणकिरिया-साहरणभूदो णियमेण कालो दु॥६०५॥
गतिस्थानावगाहक्रियासाधनभूतं खलु भवति धर्मत्रयम् ।
वर्तनाक्रियासाधनभूतो नियमेन कालस्तु ॥६०५॥ टीका - क्षेत्र ते क्षेत्रातर प्राप्त होने को कारण, सो गति कहिये । गति का अभाव रूप स्थान कहिये । अवकाश विषै रहने को अवगाह कहिए । तहां तैसै मत्स्यनि. के गमन करने का साधनभूत जल द्रव्य है। तैसे गति क्रियावान जे जीव पुद्गल, तिनकै गतिक्रिया का साधनभूत सो धर्मद्रव्यं है। बहुरि जैसे पथी जननि के स्थान करने का साधन भूत छाया है । तैसे स्थान - क्रियावान जे जीव पुद्गल, तिनके स्थान , क्रिया का साधन भूतं अधर्म द्रव्य है । बहुरि जैसे बास करनेवालों के सांधनभूत