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गोम्मटसार जीवफाण्ड गाथा ६०५ ६९२ ]
सतिका है। तैसें अवगाह क्रियावान जे जीव - पुद्गलादिक द्रव्य तिनिकें अवगाह क्रिया का साधनभूत आकाश द्रव्य है।
इहां प्रश्न - जो अवगाह कियावान तौ जीव - पुद्गल है। तिनिको अवकाश देना युक्त कह्या है । बहुरि धर्मादिक द्रव्य तौ निष्क्रिय है, नित्य सम्बन्ध कौं धरै हैं, नवीन नाहीं आए, जिनिकों अवकाश देना संभव असैं इहां कैसे कहिये ? सो कहो
_____ताका समाधान - जो उपचार करि कहिए है; जैसै गमन का अभाव होते संतै भी सर्वत्र सद्भाव की अपेक्षा आकाश को सर्वगत कहिए हैं । तैसे धर्मादिक द्रव्यनि के अवगाह क्रिया का अभाव होते संत भी लोक विष सर्वत्र सद्भाव की अपेक्षा अवगाह का उपचार कीजिए है।
इहां प्रश्न - जो अवकाश देना आकाश का स्वभाव है, तो वज्रादिक करि पाषाणदिक का पर भीति इत्यादिक करि गऊ इत्यादिकनि का रोकना कैसे हो है। सो रोकना तौ देखि रहे है । तातै आकाश तौ तहा भी था, पाषाणादिक को अवकाश न दीया, तब आकाश का अवगाह देना स्वभाव न रह्या ?
- तहां उत्तर - जो आकाश तो अवगाह देइ, परन्तु पूर्वं तहां अवगाह करि तिष्ठं है, वज्रादिक स्थूल हैं, तातै परस्पर रोक है। यामै आकाश का अवगाह देने का स्वभाव गया नाही; जातै तहां ही अनंत सूक्ष्म पुद्गल है, ते परस्पर अवगाह देव हैं ।
बहुरि प्रश्न - जो जैसे हैं तो सूक्ष्म पुद्गलादिकनि के भी अवगाहहेतुत्व स्वभाव आया। आकाश ही का असाधारण लक्षण कैसे कहिए है ?
तहां उत्तर - जो सर्व पदार्थनि कौं साधारण अवगाहहेतुत्व इस आकाश ही का असाधारण लक्षण है । और द्रव्य सर्व द्रव्यनि को अवगाह देने को समर्थ नाहीं । . इहां प्रश्न - जो अलोकाकाश तौ सर्व द्रव्यनि को अवगाह देता नाही, तहां असा लक्षण कैसे संभवै ?
ताका समाधान - जो स्वभाव का परित्याग होइ नाही । तहां कोई द्रव्य होता तो भवगाह देता, कोई द्रव्य तहां गमनादि न करै, तो अवगाह कौन कौं देव तिसका तो अवगाह देने का स्वभाव पाइए है । बहुरि सर्व द्रव्यनि को वर्तना किया का साधन भूत नियम करि काल द्रव्यं है ।