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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ६०२-६०३
arai समाधान - इहां सर्वभेदनि विपं जैसा कह्या है, जो होइ भी न भी होइ, होइ तौ एक वा दोय इत्यादि उत्कृष्ट आवली का असंख्यातवा भाग प्रमाण होइ । सो नानाकाल अपेक्षा यहु कथन है । वहुरि तहा एक कोई विवक्षित वर्तमान काल अपेक्षा वर्तमान काल विषे सर्वं मध्यभेदरूप प्रत्येकादि वर्गरणा असंख्यात लोक प्रमाणही पाइये है | अधिक न पाइए है । तिनि विषै किसी भेदरूप वर्गणानि की नास्ति ही है । किसी भेदरूप वर्गरणा एक आदि प्रमाण लीएं पाइए हैं। किसी भेदरूप वर्गणा उत्कृष्टपने प्रमाण लीएं पाइये है । असा समझना । इस प्रकार तेईस वर्गणा का वर्णन कीया ।
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पुढवी जलं च छाया, चरदियविसय कम्म- परमाणू छ- विह-भेयं भरिणयं, पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं ॥ ६०२॥
पृथ्वी जलं च छाया, चतुरिद्रियविषय कर्मपरमाणवः । षड्विधभेदं भणितं, पुद्गलद्रव्यं जिनवरैः ||६०२॥
टीका - पृथ्वी अर जल अर छाया अर नेत्र बिना च्यारि इन्द्रियनि का विषय अर कार्मारण स्कंध पर परमाणू असें पुद्गल द्रव्य छह प्रकार जिनेश्वर देवनि करि का है ।
बादरबादर बादर, बादरसुहुमं च सुहुमथूलं च । सुमं च सुमहुमं, धरादियं होदि छन्भेयं ||६०३॥
बादरबादरं बादरं, बादरसूक्ष्मं च सूक्ष्मस्थूलं च ।
सूक्ष्म च सूक्ष्मसूक्ष्मं, घरादिकं भवति षड्भेदम् ||६०३ ॥
टीका - पृथ्वीरूप पुद्गल द्रव्य बादरबादर है । जो पुद्गल स्कंध छेदने को भेदने को और जायगे ले जाने कों समर्थ हुजैं, तिस स्कंध को बादरबादर कहिए । बहुरि जल है, सो बादर है, जो छेदने को भेदने कौ समर्थ न हुजै अर और जायगे ले जाने कौ समर्थ हूजै, सो स्कंध, बादर जानने । बहुरि छाया बादर सूक्ष्म है, जे छेदने - भेदने और जायगे ले जाने की समर्थ न हुजै, सो बादरसूक्ष्म है । बहुरि नेत्र बिना च्यारि इन्द्रियनि का विषय सूक्ष्म स्थूल है । बहुरि कार्मारण के स्कध सूक्ष्म है । जो द्रव्य देशावधि परमावधि के गोचर होइ, सो सूक्ष्म है । बहुरि परमाणू सूक्ष्मसूक्ष्म है । जो सर्वावधि के गोचर होइ, सो सूक्ष्म सूक्ष्म है ।
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