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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[६८७ असंख्यातवां भाग प्रमाण पाइए है । इहां प्रत्येक शरीर, बादरनिगोद, सूक्ष्मनिगोद, इनि तीन सचित्तवर्गणानि का मध्य भेद वर्तमान काल विर्षे असंख्यात लोक प्रमाण पाइए है। बहरि महास्कध वर्गणा वर्तमान काल में जगत विष एक ही है। सो भवनवासीनि के भवन देवनि के विमान, आठ पृथ्वी, मेरु गिरि, कुलाचल इत्यादिकनि का एक स्कध रूप है। . इहां प्रश्न - जो जिनि के असंख्यात, असंख्यात योजननि का, अन्तर पाइए, तिनिका एक स्कंध कैसे संभव है ?
___ ताका उत्तर - जो मध्य विष सूक्ष्म परमाणू हैं, सो वे विमानादिक अर सूक्ष्म परमाणू, तिनि सबनि का एक बंधान है । तातै अंतर नाही, एक स्कध है । सो असा जो एक स्कध है, ताही का नाम महास्कध है।
हेट्ठिमउक्कस्सं पुण, रूवहियं उवरिमं जहणं खु । इदि तेवीसवियप्पा, पुग्गलदवा हु जिणदिट्ठा ॥६०१॥
अधस्तनोत्कृष्टं पुनः, रूपाधिकमुपरिमं जघन्यं खलु ।
इति त्रयोविंशतिविकल्पानि, पुद्गलद्रव्याणि हि जिनदिष्टानि ॥६०१॥ टीका - तेईस वर्गणानि विषै अणुवर्गणा बिना अवशेष वर्गणानि के जो नोचे का उत्कृष्ट भेद होइ, तामैं एक अधिक भए, ताके ऊपरि जो वर्गणा, ताका जघन्य भेद हो है । असे तेईस वर्गणा भेद को लीए पुद्गल द्रव्य, जिनदेवने कहे है । इनि विष प्रत्येक वर्गणा अर बादरनिगोद वर्गणा अर सूक्ष्मनिगोद वर्गणा ए तीन सचित्त है; जीव सहित है, सो इनिका विशेष कहिए है -
__अयोग केवली का अंतसमय विष पाइये असी जघन्य प्रत्येक वर्गणा, सो लोक विषै होइ भी वा न भी होइ, जो होइ तौ एक ही होइ वा दोय होइ वा तीन होइ उत्कृष्ट होइ तौ च्यारि होइ । बहुरि जघन्य ते एक परमाणू अधिक असी मध्य प्रत्येक वर्गणा, सो लोक विष होइ वा न होइ, जो होइ तौ एक वा दोय वा तीन वा उत्कृष्ट पनै च्यारि होइ, असे ही एक एक परमाणू का वधाव ते इस ही अनुक्रम ते जव अनत वर्गणा होइ, तब ताके अनंतर जो एक परमाण अधिक वर्गणा, सो लोक विषै होइ वा न होइ, जो होइ तौ एक वा दोय वा तीन वा च्यारि वा उत्कृष्टपने पाच होइ । असे एक एक परमाणू बधतै अनतवर्गणा पर्यंत पंच ही उत्कृप्ट है । ताके अनन्तरि जो