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________________ सम्यग्नानचन्द्रिका भाषाटोका 1 [ ६८५ जीवादोणंतगुणो, धुवादितिण्हं असंखभागो दु। पल्लस्स तदो तत्तो, असंखलोगवहिदो मिच्छो ॥५६॥ जीवादनंतगुणो, ध्रुवादितिसृणामसंख्यभागस्तु । पल्यस्य ततस्ततः, असंख्यलोकावहिता मिथ्या ॥५९९॥ टीका - बहुरि ध्रुवादिक तीन वर्गणानि विष जीवराशि ते अनंतगुणा गुणकार है । याकरि जघन्य को गुणे, उत्कृष्ट हो है। बहुरि प्रत्येक शरीर वर्गणा विषै पल्य का असंख्यातवा भागमात्र गुणकार है । याकरि जघन्य को गुण, उत्कृष्ट हो है। काहे ते ? सो कहिए है। प्रत्येक शरीर वर्गणा विषै जो कार्माण शरीर है । ताते समयप्रबद्ध गुणितकर्माश जीव संबंधी है। तातै जघन्य समय प्रबद्ध के परमाणू का प्रमाण ते याका प्रमाण पल्य का अर्धच्छेदनि का असंख्यातवां भाग गुणा है । ताकी सहनानी बत्तीस का अक है । तातै इहां पल्य का असख्यातवां भाग का गुणकार कह्या है । बहुरि ध्रुव, शून्य वर्गणा विर्षे असंख्यात लोक का भाग मिथ्यादृष्टी जीवनि को दीए, जो प्रमाण होइ, तितना गुणकार है । याकरि जघन्य को गुण उत्कृष्ट हो है। सेढी-सूई-पल्ला-जगपदरासंखभागगुणगारा। अप्पप्पणप्रवरादो, उक्कस्से होति णियमेण ॥६००॥ श्रेणी-सूची-पल्य, जगत्प्रतरासंख्यभागगुणकाराः । आत्मात्मनोवरादुत्कृष्टें भवंति नियमेन ॥६००॥ टीका - जगच्छे रणी का असंख्यातवां भाग, बहुरि सूच्यगुल का असख्यातवां भाग, बहुरि- पल्य का असख्यातवा भाग, बहुरि जगत्प्रतर का असख्यातवा भाग ए अनुक्रम तै बादरनिगोदवर्गणा अर शून्यवर्गणा अर सूक्ष्म निगोद वर्गणा अर नभोवर्गणा इनि विषै गुणकार है। इनिकरि अपने-अपने जघन्य को गुणे, उत्कृष्ट भेद हो है। इहां शून्यवर्गरणा विष सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग गुणकार कह्या है, सो सूक्ष्मनिगोद वर्गणा का जघन्य एक घाटि भये उत्कृष्ट शून्यवर्गणा हो है; तातै कह्या है । बहुरि सूक्ष्म निगोद वर्गणा विर्ष पल्य का असख्यातवा भाग गुणकार कह्या है। सो ताके उत्कृष्ट का कार्माण संबंधी समयप्रबद्ध गुणितकर्माश जीव सवधी है । तातै कह्या है । असै ए तेईस वर्गणा एक पंक्ति अपेक्षा कही । अव नानापक्ति अपेक्षा कहिए
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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