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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] [ ६८३ ख्यातवां भाग प्रमाण कहे, ताते बादरनिगोद वर्गणा के पहिले याकौ कहना युक्त था । जाते पुलवीनि का बहुत प्रमाण ते परमाणूनि का भी बहुत प्रमाण संभव है ? ताकां समाधान - जो यद्यपि पुलवी इहां घाटि कहे है; तथापि बादरनिगोद वर्गणा सम्बन्धी निगोद शरीरनि ते सूक्ष्मनिगोद वर्गणा संबन्धी शरीरनि का प्रमाण सूच्यंगुल का प्रसंख्यातवां भाग गुणा है । तातै तहां जीव भी बहुत है । तिनि जीवनि के तीन शरीर संबधी परमाणू भी बहुत है । तातै बादरनिगोद वर्गणा के पीछे सूक्ष्म निगोद वर्गणा कही | बहुरि जघन्य सूक्ष्मनिगोद वर्गणा को पल्य का असख्यातवा भाग करि गुणै, उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोद वर्गरणा हो है, सो कैसे पाइये है ? सो कहिए है 1 यहां महामत्स्य का शरीर विषै एक स्कधरूप आवली का असख्यातवां भाग प्रमाण पुलवी पाइये है । तहां गुणितकमीश अनंतानंत जीवनि का विस्रसोपचय सहित औदारिक, तैजस, कार्मारण तीन शरीरनि के परमाणूनि का एक स्कंध, सोई उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोद वर्गणा हो है । बहुरि ताके ऊपर नभोवर्गणा है । तहां उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा ते एक अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य भेद कों जगत्प्रतर का असख्यातवा भाग करि गुणे, उत्कृष्ट भेद हो है । बहुरि ताके ऊपरि महास्कध है । तहां उत्कृष्ट नभोवर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए, जघन्यभेद हो है । बहुरि इस जघन्य को पल्य का असख्यातवां भाग का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, ताकौ जघन्य विषै मिलाये, उत्कृष्ट महास्कंध के परमाणूनि का प्रमाण हो है । जैसे एक पक्ति करि तेईस वर्गणा कही । आगे जो अर्थ कह्या, तिस ही कौ सकोचन करि तिन वर्गणानि ही का उत्कृप्ट, जघन्य, मध्य भेदनि कौ वा अल्प - बहुत्व को छह गाथानि करि कहैं है परमाणुवग्गणम्मि ण, अवरुक्कस्तं च सेस श्रत्थि । गेज्भमहक्खंधारणं, वरमहियं सेसगं गुणियं ॥ ५६६ ॥ - परमाणुवर्गणायां न, अवरोत्कृष्टं च शेषके प्रस्ति । ग्राह्यमहा स्कंधानां वरमधिकं शेषकं गुणितम् ॥५६६ ॥ टीका - परमाणु वर्गरणा विषे जघन्य उत्कृप्ट भेद नाही है; जातं ग्रण अभेद है । बहुरि अवशेष बाईस वर्गणानि विषै जघन्य उत्कृष्ट भेद पाइए है। तहा ग्राह्य
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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