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________________ ६६२ 1 गोम्मटसार जीवका गाया ५६५ तितने तितने पहिले पहिले समय से अधिक समय समय ते मरे है । सो क्षीणकपाय गणस्थान का काल आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण अवशेप रहे तहा ताई इस ही अनुक्रम तै मरै है। ताके अनन्तर समय विपै पल्य का असंख्यातवा भाग करि पहिले पहिले समय संबंधी जीवनि को गुण, जितने होंहि तितने तितने मरे है। तहा पीछे संख्यात पल्य करि पूर्व पूर्व समय सम्बन्धी मरे जीवनि कौं गुण, जो जो प्रमाण होइ, तितने तितने मरै है। सो असें क्षीणकपाय गुणस्थान का अत समय पर्यंत जानना। तहा अंत के समय विष जे जुदे जुदे असंख्यात लोक प्रमाण शरीरनि करि संयुक्त असे आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण पुलवी, तिनिविप जे गुरिणतकमांश जीव मरे, तिनकरि हीन अवशेष जे अनंतानन्त जीव गुणित कर्माश रहे । तिनिका विनसोपचयसहित औदारिक, तैजस, कार्माण तीन शरीरनि के परमाणूनि का जो एक स्कंध,सोई जघन्य बादर निगोद वर्गणा है । बहुरि इस जघन्य कौं जगच्छेणी का असंख्यातवां भाग करि गुणे, उत्कृष्ट बादर निगोद वर्गणा हो है । सो कैसे पाइए ? सो कहिए हे स्वयभूरमरण नामा द्वीप विष जे मूलाने आदि देकरि सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती है, तिनके शरीरनि विष एक बंधन विष बधे जगच्छणी का असख्यातवां भागमात्र पुलवी है। तिनि विर्षे तिष्ठते जे गुरिणतकर्माश जीव अनंतानंत पाइये हैं। तिनिका विस्रसोपचयसहित औदारिक, तेजस, कार्माण तीन शरीरनि के परमाणूनि का एक स्कध, सोई उत्कृष्ट बादर निगोद वर्गणा है। बहुरि ताके ऊपरि तृतीय शुन्यवर्गणा है । तहा उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा ते एक प्रदेश अधिक भए, जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सूच्यगुल का असंख्यातवा भाग करि गुणें, उत्कृष्ट भेद हो है। बहुरि ताके अपरि सूक्ष्मनिगोद वर्गणा है, मो सूक्ष्मनिगोदिया जीवनि का विस्रसोपचय सहित कर्म नोकर्म परमाणूनि का एक स्कधरूप जानना । तहां उत्कृष्ट शून्यवर्गणातै एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है। सो जघन्य भेद कैसे पाइए है ? सो कहिए है - जल विष वा स्थल विर्ष वा आकाश विष जहा तहा एक बधन विष बधे, असे जे पावली का असख्यातवां भाग प्रमाण पुलवी, तिनिविष क्षपितकर्माश अनंतानन्त सूक्ष्म निगोदिया जीव है । तिनिका विस्रसोपचय सहित औदारिक, तैजस, कार्माण तीन शरीरनि का परमाणूनि का जो एक स्कंध, सोई जघन्य सूक्ष्मनिगोद वर्गणा है । इहां प्रश्न - जो बादरनिगोद उत्कृष्ट वर्गणा विष पुलवी श्रेणी के असंख्यातवे भाग प्रमाण कहे अर जघन्य सूक्ष्मनिगोद वर्गणा विर्षे पुलवी पावली का असं
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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