SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] ववहारो पुण तिविहो, तीदो वट्टतगो भविस्सो दु । तोदो संखेज्जावलिहदसिद्धाणं पमाणो दु ॥ ५७८ ॥ व्यवहारः पुनस्त्रिविधोऽतीतो वर्तमानो भविष्यंस्तु । अतीतः संख्येयावलिहतसिद्धानां प्रमाणं तु ।।५७८ ।। ――― टीका • बहुरि व्यवहार काल तीन प्रकार है अतीत, अनागत, वर्तमान । तहां अतीत काल सिद्ध राशि को संख्यात आवली करि गुण, जो प्रमारण होइ, तितना जानना | कैसे ? सो कहिए है - छह महीना र आठ समय माही छ से आठ जीव सिद्ध हो है; तो जीव राशि के अनंतवे भाग प्रमारण सर्व सिद्ध केते काल में भये ? असे त्रैराशिक करना । तहां प्रमाण राशि छ से आठ, फलराशि छह महीना आठ समय, इच्छा राशि सिद्धनि का प्रमाण, सो फल राशि को इच्छाराशि करि गुणे, प्रमाणराशि का भाग दीए, लब्धराशि संख्यात आवली करि सिद्धनि को गुण जो प्रमाण होइ, तितना आया । सोई अनादि तै लगाइ अतीत काल का परिमाण जानना । समयो हु वट्टमारणो, जीवादी सव्वषुग्गलादो वि । भावी तरिणदो, इदि ववहारो हने कालो ॥५७६ ॥ समयो हि वर्तमानो, जीवात् सर्वपुद्गलादपि । भावी अनन्तगुणित, इति व्यवहारो भवेत्कालः ।। ५७६ ॥ टीका - वर्तमान काल एक समय मात्र जानना । बहुरि भावी जो अनागत काल, सो सर्व जोवराशि ते वा सर्व पुद्गलराशि तै भी अनंतगुणा जानना । असें व्यवहार काल तीन प्रकार कह्या । कालो वि य ववएसो, सब्भारूवओ हवदि णिच्चो । उप्पण्णप्पद्धंसी, अवरो दीहंतरट्ठाई ॥ ५८० ॥ [ e काल इति च व्यपदेशः, सद्भावप्ररूपको भवति नित्यः । उत्पन्नप्रध्वंसी अपरो दीर्घान्तरस्थायी ॥ ५८० ॥ टीका काल असा जो लोक विषै कहना है, सो मुख्य काल का अस्तित्व का कहनहारा है । मुख्य बिना गौण भी न होइ । जो सिंह पदार्थ ही न होइ तो यहु पुरुष सिंह औसा कैसे कहने में आवै सो मुख्य काल द्रव्य करि नित्य है, तथापि पर्याय -
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy